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________________ . श्री अजितनाथ-चरित्र [३१ और उनके पीछे देवियाँ व देवियों के पीछे साध्धियाँ खड़ी रहीं। भुवनपति, ज्योतिष्क और व्यंतरोंकी देवियाँ, दक्षिण द्वारसे प्रवेश कर, प्रभुको प्रदक्षिणापूर्वक नमस्कार कर, अनुक्रमसे नैऋत्य दिशामें खड़ी रहीं। भवनपति, ज्योतिष्क और व्यंतर देव, पश्चिम दिशासे प्रवेश कर, प्रभुको प्रदक्षिणापूर्वक नमस्कार कर, अनुक्रमसे वायव्य दिशामें बैठे। इंद्रसहित वैमानिकदेव, उत्तर द्वारसे प्रवेश कर, प्रभुको प्रदक्षिणापूर्वक नमस्कार कर, ईशान दिशामें अनुक्रमसे बैठे। उस समय इंद्रका शरीर भक्तिसे रोमांचित हो पाया। उसने पुनः हाथ जोड़, नमस्कार कर, इस तरह विनती की,-(३७०-३५३) ____ "हे नाथ ! आप तीर्थकर नामकर्मसे सबके अभिमुख हैंमुखिया हैं। और हमेशा सन्मुग्ध होकर अनुकूल बनकर आप सारी प्रजाको आनंदित करते हैं। आपके एक योजन प्रमाणवाले धर्मदेशनाके मंदिर में ( समवसरणमें ) करोड़ों तिर्यंच, मनुष्य और देवता समाजाते हैं। एक भाषामें बोले गए, मगर सबको अपनी अपनी भाषामें समझमें आनेवाले, सबको प्रिय लगनेवाले और धर्मबोध देनेवाले आपकं वचन भी तीर्थंकर नामकर्मकाही प्रभाव हैं। आपकी विहारभूमिके चारों तरफ, सवा सवा सौ योजन तक, पहले आए हुए रोगरूपी बादल, आपके विहाररूपी पवनके झपेटोंसे, विनाही प्रयत्न के, नष्ट हो जाते हैं। और (नेक) राजाओं के द्वारा नष्ट कीगईं अनीतियोंकी तरह,आप नहाँ विहार करते हैं वहाँ-उस जमीनमें-चूहे,टिड़ियाँ और तोते वगैराकी उत्पत्तिरूप दुर्भिक्ष आदि ईतियाँ प्रकट नहीं होती हैं। आपके कपारूपी पुष्करावर्तकी वर्षासे पृथ्वीपर बी,
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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