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________________ भी अजितनाथ-चरित्र . [ ६२७ संयत नामके सातवें गुणस्थानसे अपूर्वकरण नामक पाठवें गुणस्थानमें पाए । श्रौत अर्थसे शब्दको तरक जाते और अर्थसे शब्दमें जाते हुए प्रभु नानाप्रकारके श्रुत विचारवाले शुक्लध्यानके पहले पाएको प्राप्त हुए। फिर जिसमें सभी जीवोंके समान परिणामहोते हैं उस 'अनिवृत्तिबादर' नामके नवें गुणस्थानमें आरूढ हुए। उसके बाद लोभरूपी कपायके सूक्ष्म खंड करनेसे सूक्ष्मसंपराय नामके दसवें गुणस्थानको प्राप्त हुए। उसके बाद तीन लोकके सभी जीवोंके कम खपानेमें समथ ऐसे वीर्यवाले प्रभु मोहका नाश करके क्षणमोह नामके बारहवें गुणस्थानमें पहुँचे। इस बारहवें गुणस्थानके अंतिम समयमें प्रभु एकत्वश्रुतप्रविचार नामक शुक्लध्यानके दूसरे पाएको प्राप्त हुए। इस ध्यानसे तीनों लोकके विषयों में रहे हुए अपने मनको इस तरह एक परमाणुपर स्थिर किया जिस तरह सप-मंत्रसे सारे शरीरमें फैला हुआ विष सर्पदेशके स्थानमें आ जाता है। ईंधन के समूहको हटानेसे थोड़े इनमें रही हुई आग जैसे आपही बुझ जानी है वैसेही, उनका मनभी सर्वथा निवृत्त हो गया। फिर प्रभुकी ध्यानरूपी आग जलनेसे, आगसे बरफकी तरह, उनके सभी घातिकर्म नष्ट हो गए, और उनको उज्ज्वल केवलज्ञान प्राप्त हुआ । उस दिन, प्रभुको छट्टका तप था, पोस मासकी एकादशी थी और चंद्र रोहिणी नक्षत्र में आया था। (३२४-३४४) . ___ उस ज्ञानके उत्पन्न होनेसे तीन लोकमें रहे हुए तीनों फालोंके सभी भावोंको, घे इस तरह देखने लगे जिस तरह हाथमें रखी हुई चीज दिखती है। जिस समय.प्रभुको केवल. ज्ञान हुभा उस समय, मानो प्रभुकी अवज्ञाके भयसे कपित
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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