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________________ श्री अजितनाथ-धरित्र [ ६११ - की आक्षा भंग होनेका भय सता रहा है। स्वामीफा विरह और उनकी आज्ञाका न मानना दोनों बातें मेरे लिए दुःखकी कारण हो रही हैं। फिर भी विचार करनेपर गुरुजनोंकी आज्ञाका पालन करनाही श्रेष्ठ मालूम होता है।" इस तरह मोचकर महामति सगरकुमारने गद्गद स्वरमें कहा, "प्रभो ! आपकी पाशा सर आँखापर ।" (१६०-१६२) फिर राजाओंमें श्रेष्ठ अजित स्वामीने महात्मा सगरफा राज्याभिषेक करने के लिए तीर्थजल श्रादि सामग्री लानेकी नौकरोंफो आज्ञा दी । मानो छोटे छोटे द्रह हों ऐसे, कमलोसे ढके हुए. मुखवाले कुंभ, स्नान करने योग्य तीर्थके जलसे भरकर, सेयफ लोग वहाँ लाए। जैसे राजाभेटें लाते हैं वैसेही, व्यापारी अभिपेकके दूसरे साधन भी, तत्कालही वहाँ ले आए। फिर वहाँ मानो मूर्तिमान प्रताप हो ऐसे अनेक राजा राज्याभिषेक करने के लिए आप अपने मंत्रसे (यानी सलाहसे) इंद्र के मंत्रीका भी उल्लंघन करनेवाले मंत्री हाजिर हुए मानो दिग्पाल होगस सेनापति आए; इर्षसे जिनका हृदय भरा हुआ है ऐसे बंधु चौधष एफत्र हुए और मानो एकाही घरगसे आप हों ऐसे हाथी, घोड़े और अन्य साधनों के अध्यन भी तत्कालही श्रा पारे। उस समय नादसे शिखरोंको गुंजाते हुए शव यशने लगे; मेपफे समान मृदंग बजने लगेः दुदुभि और टोलोंकी पनि गूंजने लगीऐसा जान पड़ता था मानो अनियनिसे मार्ग दिशाओंको मंगल सिखानेवाले सध्यापक है। समुद्री नरंगोही सरह मोफ पाने लगे, मालरोकी गनगनाइट पारों नरक सुनाई देने लगी। कई बाजे फोंसे बनाए जा रहे थे. फापर था पर
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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