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________________ ६०४ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पर्व २. सर्ग ३. वैसेही श्रेष्ठ पुरुष भी गुरुजनोंकी आज्ञाको नहीं मोड़ते।] (६३) अजित स्वामीका राज्याभिषेक और संगरको युवराज-पद मिलना फिर प्रसन्नचित्त जितशत्रु राजाने, बड़ी धूम-धामके साथ, निज हाथोंसे अजित स्वामीका गज्याभिषेक किया। उनके राज्याभिपेकसे सारी पृथ्वी प्रसन्न हुई। "विश्वत्राणक्षमे नेतर्याप्ते का प्रीयते न हि ।" [दुनियाकी रक्षा करने में समर्थ नेता मिलनेपर कौन खुश नहीं होता है? अर्थात सभी खुश होते हैं। फिर अजित म्वामीने सगरको युवराज पदपर स्थापित किया। इससे उन (अपने माईके साथ ) अधिक प्रीति रम्बनेवाले अजित स्वामीको ऐसा मालूम हुआ मानो, उन्होंने अपनीही दूसरी मूर्ति वहाँ स्थापित की है। (६४-६६) अब अजितनाथने बड़ी धूम-धामले जितशत्रु राजाका निष्क्रमणोत्सव किया। इन्होंने ऋपभ स्वामीके तीर्थ वर्तमान स्थविर महाराजासे, मुक्तिकी मातारूप दीक्षा ग्रहण की। बाहरी शत्रओंकी तरह अंतरंग शत्रुओंको जीतनेवाले उन राजषिने राज्यकी तरह ही अखंड व्रतका पालन किया । अनुक्रमसे केवलज्ञान उत्पन्न होनेपर शैलेशीध्यान में स्थित वे महात्माआठ कमांका नाश कर परमपदको प्राप्त हुए-मोक्ष गए । (१७-१००) इधर अजितनाथ स्वामी सब तरहकी ऋद्धियोंसे, लीला. सहित अपनी संतान की तरह पृथ्वीका पालन करने लगे। वे दंडादिके विनाही सभीकी रक्षा करते थे, इससे प्रजा इस तरह
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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