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________________ श्री अजितनाथ-चरित्र [YE आगे चलाता था। वह वाणसे राधावेध, शब्दवेध, जलके अंदर रखा हुआ लक्ष्यवेध और चक्रवेध करके, प्रभुको अपनी वाणविद्याकी निपुणता बताता था। ढाल और तलवार धारण करने वाला वह आकाशके मध्यभागमें रहे हुए चंद्रमाकी तरह, फलकमें प्रवेश कर (यानी रंगभूमिके तख्तेपर चढ़कर), अपनी पादगति बताता था (यानी ढाल तलवारके साथ पैंतरे दिखाता था।) वह आसमानमें चमकती हुई बिजलीकी रेखाका भ्रम पैदा करनेवाले भाला, शक्ति और शर्वला' को वेगके साथ फेरता था। नर्तक पुरुप जैसे नाच बताता है वैसेही सर्वचारीमें (सभी विपयोंमें) निपुण सगरने अनेक तरहसे छुरी चलानेकी विद्या भी बताई। इसी तरह दूसरे शत्रोंको चलानेकी चतुराई भी उसने गुरुभक्तिसे और उपदेश ग्रहण करनेकी इच्छासे, अजित स्वामीको वताई। फिर अजित स्वामीने, सगरफुमारको, ये सब यातें बताईं जिनकी उसकी कलामें कमी थी । वैसे उत्तम पुरुपोंके शिक्षक भी वैसेही उत्तम होते हैं । (४४-५५) कुमारोंकी युवावस्था इस तरह दोनों कुमारोंने अपने योग्य वेल कूद करते हुए मुसाफिर जैसे गांव की सीमाको पार करता है वैसही, बालवय. को समाप्त किया। सम चौरस संस्थान' और वनवृषभनाराच. संहनन' से सुशोभित, सोनेके समान कांतियाले, सादे पार १-तीमा-एक प्राचीन हगिपार जिसमें लकड़ी में लाई. का फल लगा रहता था। २-शरीरकी शाकसि-विशेष:-ar. का गटन-निशेष।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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