SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 619
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री अजितनाथ-चरित्र कर तोता और मोर वगैरा पंखियोंको पकड़ लेते थे। अच्छे हाथीके वच्चेकी तरह स्वच्छंदतासे फिरते-दौड़ते अलग अलग तरहकी चतुराइयोंसे धायोंको भुलावेमें डालते थे। उनके चरणकमलों में पड़े हुए आभूपणोंके झनझनाहट करते हुए घुघरू (गुरियाँ) भौरोंकी तरह शोभते थे। उनके गलेमें पड़ी और छातीपर लटकती हुई सोने और रत्नकी ललंतिकाएँ' आकाशमें लटकती हुई विजलीकी तरह शोभती थीं। अपनी इच्छाके अनुसार खेलते हुए उन कुमारोंके कानोंमें पहनाए हुए सोनेके नाजुक कुंडल,जल में संक्रमण करते हुए-पानी में दिखाई देते हुए सूर्यके विलासको धारण करते थे। उनके चलनेसे हिलती हुई सरकी चोटियाँ वाल-मयूरोंके नाचसी मालूम होती थीं। जैसे उत्ताल तरंगें राजहंसोंको एक पद्मसे दूसरे पद्मपर ले जाती हैं वैसेही, राजा उनको एक गोदसे दुसरी गोद में लेता था। जितशत्रु राजा रत्नके आभूपणकी तरह उन दोनों कुमारोंको गोदमें, छातीपर, हाथों में, कंधोंपर और सरपर बार बार विठाता था। भौंरा जैसे कमलको सूंघता है वैसे ही, वह प्रीतिवश उनके मस्तकोंको बार बार झूचना था, और तृप्त होता था । राजाकी उँगलियों. को पफड़कर दोनों तरफ चलते हुए दोनों राजकुमार मेरु पर्वतके दोनों तरफ चलते हुए दो सूया से मालूम होते थे। योगी जैसे आत्मा और परमात्माका ध्यान करते है वैसेही, जितशव राजा परम आनंद के साथ दोनों कुमारोंका ध्यान करते थे-दोनोंको याद करते थे। अपने घर में जन्मे हुए कल्पवृक्षकी तरह राजा चार बार उनको देखता था और चतुर शुक्रकी तरह बार बार १--गलेमें पहननेता एम प्राभूषण-विशेष।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy