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________________ श्री अजितनाथ-चरित्र [५८१ रत्नडंडोंसे झालरें बजा रहे थे, कई डमरू बजा रहे थे, कई डिंडिम (डुगडुगी) पीट रहे थे, कई नर्तककी तरह ताल-स्वरके साथ ऊँचे प्रकारका नाच कर रहे थे, कई विट (धूर्त ) और चेट ( भाँड ) की तरह हँसानेके लिए विचित्र प्रकारकी चेष्टाएँ कर रहे थे, कई व्यवस्थित रूपसे गवैयोंकी तरह गायन गा रहे थे, कई गवालोंकी तरह गले फाड़ फाड़कर गा रहे थे, कई वत्तीस पात्रोंसे नाटकके अभिनय बताते थे, कई गिरते थे, कई कूदते थे, कई रत्नोंकी बारिश करते थे, कई सोना बरसाते थे, कई आभूपण बरसा रहे थे, कई चूर्ण ( कपूर, चंदन इत्यादिका चूरा ) उछाल रहे थे, कई मालाएँ, फूल और फल वरसा रहे थे, कई चतुराईसे चल रहे थे, कई सिंहनाद कर रहे थे, कई घोड़ों की तरह हिन-हिना रहे थे, कई हाथियोंकी तरह गर्ज रहे थे, कई रथ-घोप (चलते हुए रथकी आवाजके समान आवाज) कर रहे थे, कई तीन नाद (हस्त्र, दीर्घ और प्लुतका शब्द) कर रहे थे, कई पाद-प्रहारसे मंदराचलको हिला रहे थे, कई चपेटे ( तमाचे ) से पृथ्वीको चूर्ण कर रहे थे, कई अानंदकी अधिकतासे बार बार कोलाहल कर रहे थे, कई मंडल बनाफर रास कर रहे थे, कई बनावटी रूपसे जल जाते थे, कई कौतुक. से आवाज करते थे, कई मेघके समान घड़े जोरोंसे गर्जना करते थे और कई बिजलीकी तरह चमकते थे। इस तरह देवता आनंदके साथ अनेक तरहकी चेष्टाएँ कर रहे थे। उस समय अच्युतेंद्रने बड़े आनंदके साथ भगवानका अभिषेक किया। (४३५-४५६) फिर निष्कपट भक्तिवाले उस इंद्रने, मस्तकपर मुफुटके
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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