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________________ __५७४ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पव २ सर्ग २. अनेक रनके आभूषणोंसे वह चलते हुए रनके पर्वतके समान, सफेद वनवाला, पुष्पमाला धारण किए हुए, बड़े वनोंका वाहनवाला, सामानिक वगैरे करोड़ों देवताओंसे सेवित उत्तरार्द्ध स्वर्गका स्वामी. पुष्पक नामके विमानमें बैठकर, दक्षिण तरफके ईशान कल्पके रन्ते परिवार सहित विदा हुआ। थोड़ेही समयमै असंख्य द्वीप समुद्रांको लाँधकर वह नंदीश्वर महाद्वीप पहुँचा। वहाँ उसने ईशान कोणके रतिकर पर्वतपर, अपने विमानको हेमंत ऋतुके दिनकी तरह छोटा किया। बहाँसे वह समय स्रोए वगैरकमसे विमानको छोटा बनाताहा मेद पर्वतपर, शिष्यके समान (नम्र होकर ) प्रभुके पास आया। (३५३-३६७) __ दूसरे सनत्कुमार, ब्रह्म, शुक्र और प्राणतके इंद्रोंने भी सुघोषा घंटा बजवाकर नेगमेपीके द्वारा देवताओंको कहलाया। देवता श्राए। उनके साथ विमानमें बैंठकर वेशद्रकी तरह उत्तर दिशा भागलेनीवर दीप आए और वहाँ अग्निकोणके रतिकर पर्वतपर अपने विमानोंको छोटा बनाकर वहाँसे तत्काल ही मेन्पर्वत पर, इंद्रकी गोद में विराजमान, प्रमुके पास आए, और चन्द्र के पास नक्षत्रांची तरह खड़े रहे। (३६-३७२) । ___ माहेद, लांतक, सहन्नार और अच्युत नामके इंद्रोंने भी महाघोषाघंटा बजवाकर लघुपराक्रम सेनापतिद्वारा देवताओंको बुलाया। इनके साथ वे विमानोंमें सवार होकर ईशान इंद्रकी तरह, दक्षिण मार्गसे, नंदीश्वर द्वीप आप; और वहाँ ईशान दिशाके रतिकर पर्वतपाअयन विमानोंको छोटा बनाकर, मुलाफिर लोग जैसे वन फले-ले वृक्षोंकी तरफ जाते है वैसेही, व मेरु पर्वतके शिवरपर स्वामीके पास पहुंचे। (३७१-३७३)
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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