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________________ दूसरा भव-धनसेठः [.३५ - क्षेत्रके युगलियोंकी आयु तीन पल्योपमकी होती हैं, उनका शरीर तीन कोसका होता है,उनकी पीठमें दो सौ छप्पन पसलियाँ होती हैं, वे अल्पकषायी और ममतारहित होते हैं, उनको तीन दिनमें एक बार भोजनकी इच्छा होती है, आयुके अंत में एकही वार स्त्री-युगलिया गर्भ धारण करती है, उनके एक युगल संतान पैदा होती है। उनको उन्चास दिनतक पालकर युगलिया (पुरुष और स्त्री दोनों) एक साथ मरते हैं, और वहाँसे देवगतिमें जाते हैं (किसी स्वर्गमें जन्मते हैं)। उत्तर कुरुक्षेत्रमें रेती स्वभावसेही शकर जैसी मीठी होती है,जल शरदऋतुकी चाँदनीके समान निर्मल होता है और भूमि रमणीय (सुंदर ) होती है। उनमें दस तरह के कल्पवृक्ष होते हैं। वे युगलियोंको बिना मेहनतके, उनकी माँगी हुई चीजें देते हैं। ...१. मद्यांग नामके कल्पवृक्ष मद्य देते हैं । २. भृगांग नामके कल्पवृक्ष पात्र ( वरतन ) देते है। ३. तूर्योग नामके कल्पवृक्ष विविध शब्दोंवाले ( रागरागिणियोंघाले) वाजे देते हैं। ४. दीपशिखांग और ५. ज्योतिषकांग नामके कल्पवृक्ष अद्भुत प्रकाश देते हैं। ६. चिंत्राग नामके कल्पवृक्ष तरह तरहके फूल और उनकी मालाएँ देते हैं। ७. चित्ररस नामके कल्पवृक्ष भोजन देते हैं। ८. मण्यंग नामके कल्पवृक्ष प्राभूपण (जेवर) देते हैं। १. गेहाकार नामके कल्पवृक्ष घर देते हैं। १०. मनग्न नामके कल्पवृक्ष दिव्य या देते हैं। ये कल्पवृक्ष नियत और अनियत दोनों तरहके अोंको (पदार्थाको) देते हैं । वहाँ दूसरे १-समय विशेष । (टिप्पण देसो) - - - - -
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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