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________________ श्री अजितनाथ-चरित्र [५४६ ऐसे वस्त्रोंसे, मानो ज्योतिष्क देवताओंके रथ हों ऐसे अति सुंदर वाहनोंसे; इसी तरह हरेक घर, हरेक दुकान और हरेक चौक नया बनाया गया था। इससे धन देकर पूर्ण की गई वह नगरी अलकापुरीके समान सुशोभित होने लगी। (३७-६४) . . चक्रवर्तीकी माताके चौदह स्वप्न . उसी रातको सुमित्रकी स्त्री वैजयंतीने-जिसका दूसरा नाम यशोमती भी था, वेही चौदह सपने देखे। कुमुदिनीकी तरह अधिक हर्ष धारण करती हुई उन विजया और वैजयंतीने वाकी रात जागते हुएही विताई । सवेरेही स्वामिनी विजयाने सपनेकी बात , जितशत्रु राजासे कही और वैजयंतीने सुमित्रविजयसे कही । विजयादेवीके उन सपनोंका सरल मनसे विचार कर उनका फल राजा जितशत्रु इसतरह कहने लगे, "महादेवी ! गुणोंसे जैसे यशकी वृद्धि होती है, शास्त्रोंका अभ्यास करनेसे जैसे विशेष ज्ञानकी सम्पत्ति मिलती है और सूरजकी किरणोंसे जैसे जगतमें प्रकाश फैलता है वैसेही,इन सपनोंसे तुम्हारे एक उत्तम पुत्ररत्न पैदा होगा।" ( ६५-७०) . इस तरह राजा जब सपनोंका फल कह रहे थे तभी प्रतिहारी (छड़ीदार) ने आकर सुमित्रविजयके आनेके समाचार दिए । सुमित्रविजय वहाँ आ पंचांगसे जमीन छू, राजाको देवता की तरह नमस्कार कर, यथायोग्य स्थानपर बैठा। थोड़ी देरके बाद पुनः भक्ति सहित हाथ जोड़, वह कुमार इस तरह कहने लगा, "आजरातके अंतिम प्रहर में आपकी वहू वैजयंतीने, मुखमें प्रवेश करते हुए चौदह सपने देखे हैं। वे इस प्रकार है,
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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