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________________ . . प्रथम भव-धनसेठ . [३३ उपदेशसे ग्रंथ. संशय रहित और सरल हो जाते हैं। लीकपर जैसे गाड़ियोंकी कतार चलती है वैसेही नदियाँ भी दोनों किनारोंके बींचमें धीरे धीरे बह रही हैं। दोनों तरफ खेतोंमें पके हुए श्यामक ( साँवा चावल ), नीबार (तिनी धान्य), वालुंक (एक तरहकी ककड़ी) कुवलय (केले या बेर) आदिसे रस्ते मानों मुसाफ़िरोंका अतिथिसत्कार कर रहे हैं। शरदऋतुकी हवासे हिलते हुए गन्नोंसे निकलती हुई आवाज मानों पुकार रही है कि हे मुसाफिरों, अब अपनी अपनी सवारियोंपर चढ़ जाओ; (चलनेका) समय हो गया है। बादल सूर्यकी तेज किरणोंसे __ 'तपे. हुएं मुसाफिरोंके लिए छातेका काम कर रहे हैं। सार्थक साँढ अपने ककुदोंसे ( बैलोंके कंधों परके डिल्लोंसे ) जमीनको रौद् रहे हैं; मानों वे जमीनको, समतल बनाकर, सुखसे मुसाफिरी करने लायक बना रहे हैं। पहले रस्तोंपर पानी जोरसे बहता, गर्जना करता और उछलता हुआ आगे बढ़ता था, वह अब वर्षाऋतुके बादलोंकी तरह जाता रहा है। फलोंसे झुकी हुई वेलोंसे और पद पदपर बहनेवाले निर्मल जलके झरनोंसे रस्ते, मुसाफिरोंके लिए, बगैर मेहनतकेही पाथेयवाले हो गए हैं, और उत्साहसे भरेहुए दिलवाले उद्यमी लोग, राजहंस की तरह, दूसरे देशोंमें जानेके लिए जल्दी मचा रहे हैं।" (२०५-२१७) '' मंगलपाठककी बात सुनकर धनसेठने यह सोचकर कि इसने मुझे चलनेका समय हो जानेकी सूचना दी है, रवाना होनेकी भेरी वजवा दी (ढोल बजवा दिया)। आकाश और पृथ्वीके मध्यभागको भर देनेवाले भेरीके नादसे (आवाजसे)
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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