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________________ ५४४ ] त्रिपष्टि शलाका पुरुष चरित्रः पर्व २. सर्ग २. और कायामें उसको धर्मके लिएही बंधन थे। उसके सुमित्र विजय नामका एक छोटा भाई था । वह असाधारण पराक्रमी था । बही युवराज भी था । (९-१२) उसके विजयादेवी नामकी रानी थी। वह पृथ्वीपर श्राई हुई सानो देवी थी। दो हाथों, दो नेत्रों और मुखसे मानो विकास पाए हुए कमलके, खंडमच भागों से बनी हो वैसे वह देवी शोभती थी । वह पृथ्वीका आभूषण थी और उसका श्राभूषण शील था। उसके शरीरपर आभूषणों का भार था, वह केवल प्रक्रिया (व्यवहार) के लिए ही था। वह सभी कक्षाओंोंको जानती थी और सारे संसार में शोभनी थी, इससे ऐसा मालूम होता था कि मानी सरस्वती या लक्ष्मी पृथ्वीपर निवास करनेके लिए श्राई है । राजा सर्वपुरुषों में उत्तम था और रानी सर्व त्रियाने उत्तम थी, इसलिए उन दोनोंका ने गंगा और सागरके संगम सा उत्तर था । ( १३-१७ ) विमलवाहन राजाका जीव विजय नामक विमानसे य ऋर, रत्नकी खानके समान विजयादेवीके गर्ममें, वैशाख सुदी १३ के दिन, चंद्रका योग रोहिणी नत्र में आया था तत्र, चीन ज्ञानको (मति, श्रुति और अवधि) धारण करनेवाले पुत्ररूपमें, आया । उनके गर्भवासमें धानसे एक नग लिए नारकी जीवोंको भी सुख हुआ। उस रातके प्रति पवित्र चौथे परमें विजयादेवीने चौदह सपने देखें । 1 नीर्थंकरकी माता के चौदह स्वप्न १- हस्ति- पहले सपने उस की सुगंध भरोंका
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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