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________________ श्री अजितनाथ-चरित्र - [५३१ - . पर बैठनेवाले वे इष्ट और अनिष्ट उपसगोंको निःस्पृह और निर्भय होकर सहन करते थे। ११-शय्या परिसहः-यह संथारा (विस्तर)सबेरेही छोड़. ना पड़ेगा यह सोचकर वे मुनि अच्छे-बुरे संथारेमें, सुख-दुःख न मानते, रागद्वेष छोड़कर सोते थे। १२-आक्रोश परिसह-अपनी क्षमाश्रमणताको जानने वाले वे मुनि, गुस्सा करके बुरा भला कहनेवाले पर भी गुस्सा नहीं करते थे, वरन वे उसका उपकार मानते थे। १३-वध-बंधन परिसह-उनको कोई मारता था (बाँधता था) तो भी जीवका नाश न करने के कारणसे, क्रोधकी दुष्टता जाननेसे, क्षमावान होनेसे और गुणोंके उपार्जनसे वे किसीपर हाथ नहीं उठाते थे-किसीको नहीं मारते थे। - १४-याचना परिसह-दूसरोंके द्वारा दिए गए पदार्थ पर जीवननिर्वाह करनेवाले यतियोंको याचना करनेपर भी यदि कुछ न मिले तो क्रोध न करना चाहिए, यह समझकर वेन याचना-दुःखकी परवाह करते थे, न (वापस) गृहस्थ बन जानेकी ही इच्छा रखते थे। १५-अलाभ परिसह–वे अपने लिए और दूसरेके लिए भी अन्नादिक पदार्थ पाते थे कभी नहीं भी पाते थे, परंतु वेन तो पानेपर प्रसन्न होते थे और न न पानेपर अप्रसन्नही होते थे। लाभ होनेपर न मद करते थे और न अलाभ होनेपर अपनी या पराई निंदाही करते थे। . १६-रोग परिसह-वे न रोगसे घबराते थे और न इलाज
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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