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________________ ... .. श्री अंजितनाथ-चरित्र [५३७ . ३-काय गुप्तिः-(जब वे कायोत्सर्ग कर ध्यानमें खड़े होते थे तव ) महिष वगैरा पशु, कंधे या शरीरकी खुजली मिटानेके लिए मुनिको खंभा समझकर उनके शरीरसे अपने शरीरको घिसते थे तो भी वे कायोत्सर्गको छोड़ते न थे। आसन डालनेमें, उठाने में और संक्रमण (विहार करने) के स्थानोंमें चेष्टारहित .. होकर नियम करते.थे। . इसतरह वे महामुनि चारित्ररूपी शरीरको उत्पन्न करने में, उसकी रक्षा करनेमें और शोधन करने में (दोष मिटानेमें) माताके समान पाँच समिति और तीन गुप्तिरूपी आठ प्रवचन-माताको धारण करते थे। (२६४-२७५) . . बाईस परिसह १-क्षुधा परिसहः-भूखसे पीड़ित होनेपर भी शक्तिवान बनकर एषणाको लाँघे बगैर अदीन और व्याकुल हुए बगैर वे विद्वान मुनि संयम यात्राके लिए उद्यम करते हुए विचरण करते - - थे। २-तृषा परिसहः-रस्ते चलते हुए प्यास लगती थी तो भी वे तत्ववेत्ता मुनि दीन बनकर कच्चा पानी पीनेकी इच्छा न कर प्रासुक जल पीनेकीही इच्छा करते थे। ३-शीत परिसहः-सरदीसे तकलीफ पाते हुए और चमडीके रक्षण-रहित होते हुए भी वे महात्मा अकल्प्य (ग्रहण न फरने लायक) वन लेते न थे और न आग जलाते थे, न जलती हुई श्रागसे तापतेही थे। '४-उष्ण परिसहः-गरमियोंमें धूपसे तपते हुए भी वे मुनि
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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