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________________ ५८] त्रिषष्टि शलाका पुन्य-चरित्र: पर्व १. मग६. केवलज्ञान होनेके बाद महात्मा भरत मुनिने, ऋषभन्वामी की तरह, गाँवों, खानों, नगरों, अरण्यों, गिरियों, द्रोणमुखों, वगैरामें धर्मदेशनाले भव्य प्राणियोंको प्रनिबोध करते हुए साधुपरिवार सहित एक लाग्न,पूर्व तक विहार किया। अंत उन्द्रान भी श्रष्टापद पर्वतपर जाकर विधिनहित चनुर्विध अाहारका प्रत्याग्वान किया। एक मासके अंतमें चंद्र जब श्रवण नक्षत्रका था तब अनंत चतुरक (अनंत वान,अनंत दशन, अनंत चारित्र और अन बीय) प्राप्त हुए हैं जिनको मेस मर्यि भरत निद्धिक्षेत्र (मोन ) को ग्राम हुए। (७१७-७५०) इस नन्ह भग्नेश्वरने जनहाना पूर्व लन्न राजकुमारकी तरह विताय । उस समय भगवान ऋषमंदवनी पृथ्वीका पालन करने थे। भगवान दीक्षा लेकर छान्यावन्या एक हजार बरसनक रहे, पसे उन्होंने (मरनने) एक हजार वप मांडलिक राजाकी तरह विनापाक हजार वर्ष कम छःलान्ट पूर्व तक वे चक्रवती रहे । केवलज्ञान उत्पन्न होने के बाद विश्ववर उपकार करनेके लिए दिनमें मुरजकी नरह उन्होंने एक पूर्वक पृथ्वीपर विहार किया। इस तरह चांगसी पूर्व लाख पाएका अमोग कर. महात्मा भरत मोन गए। उस समय तत्कालही हर्थित देवताकि साथ स्वर्गपति इंने उनका मोन-गमनोत्सव किया। (७५१-७५५.) इस प्रथम पर्वमें, श्री ऋषभदेव प्रमुळे पूर्वमत्रका वर्णन, कुलकरकी उत्पत्ति, प्रमुकाजन्म, विवाह, व्यवहार दर्शन, राज्य, व्रत और केवलनान, मरत राजाका चक्रवर्तीपन, प्रमुका और
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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