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________________ भ० ऋपभनाथका वृत्तांत [५८३ लतामंडपकी रमणीक शय्याओंमें रमण करने लगे। वहाँ कुसुम हरण करनेवाले विद्याधरोंकी तरह युवान पुरुपोंकी पुष्पचयनकी क्रीड़ाको वे कौतुकसे देखने लगे; कामदेवकी पूजा करती हों ऐसे, वारांगनाएँ फूलोंकी पोशाकें गूंथ गूंथकर महाराजको भेट करने लगी; मानो उनकी उपासना करने के लिए असंख्य श्रुतियाँ एकत्रित हुई हों ऐसे, नगरनारियों सारे शरीरमें फूलोंके गहने पहन कर उनके आसपास क्रीड़ा करने लगी, और ऋतुदेव. ताओं के एक अधिदेवता (रक्षक) हों ऐसे सारे शरीरपर फूलोंके आभूषण पहनकर, उन सबके बीचमें महाराजा भरत शोभने लगे। (६६०-६६७) कभी कभी वे अपने स्त्रीवर्गको साथ साथ लेकर राजहंसकी तरह कीढ़ावापीमें,स्वेच्छासे क्रीड़ा करने के लिए जाने लगे। हाथी जैसे नर्मदा नदी में हथिनियों के साथ क्रीड़ा करताहै वैसेही वहाँ वे सुंदरियोंके साथ जलक्रीड़ा करने लगे। जलकी तरंगें, मानो उन्होंने सुंदरियोंसे शिक्षा ली हो ऐसे, क्षणमें कंठमें, क्षणमें भुजामें और क्षणमें हृदयमें, उनका आलिंगन करने लगीं; इससे उस समय, कमलके करणाभरण और मोतियों के कुंडल धारण करनेवाले महाराजा, मानो साक्षात वरुणदेव हों ऐसे जलमें शोभने लगे; मानो लीलाविलासके राज्यपर महा. राजाका अभिषेक करती हों ऐसे, "में पहली ! में पहली !" सोचती हुई स्त्रियों उनपर जलका सिंचन करने लगी। मानो अप्सराएँ हों, मानो जलदेवियाँ हो, ऐसे चारों तरफ रही हुई और जलक्रीसामें तत्पर ऐसी उन रमणियों के साथ चकीने बहुत समयतक क्रीड़ा की। अपनी स्पर्दा करनेवाले कमलाक
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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