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________________ भ० ऋषभनाथका वृत्तांत [ ४६५ घोड़ों, मनुष्यों, किन्नरों, पक्षियों, बालकों, रुरुमृगों (काले हिरनों ), अष्टापदों, चमरीमृगों (सुरा गायों), हाथियों, वनलताओं और कमलों के चित्रोंसे, विचित्र और अद्भुत रचनावाला, वह चैत्य घने वृक्षोंवाले उद्यानके समान शोभता था । उसके आस पास रत्नोंके खंभे थे । मानो आकाशगंगाकी तरंगें हों ऐसी पताकाओं से वह चैत्य मनोहर लगता था । ऊँचे सोने के ध्वजदंडों से वह उन्नत मालूम होता था । निरंतर प्रसरती (हवा में उड़ती ) पताकाओं की घुघरियोंकी आवाज विद्याधरोंकी कटि-मेखलाओं (कंदोरों) की ध्वनिका अनुसरण करती थीं। उसके ऊपर विशाल कांतिवाले, पद्मराग मणिके डोसे वह चैत्य . माणिक्य जड़ी हुई मुद्रिकावाला हो ऐसा शोभता था । किसी जगह वह पल्लवित हो, किसी जगह वह बखतरवाला हो और - किसी जगह वह रोमांचित हो और कहीं किरणोंसे लिप्त हो ऐसा मालूम होता था । गोरुचंदन के रसमय तिलकों से वह चिह्निन किया गया था। उसकी चुनाईका हरेक जोड़ ऐसा मिला हुआ था कि वह चैत्य एकही पत्थरका बना हुआासा मालूम होता था । उस चैत्यके नितंबभागपर विचित्र हाव-भाव से मनोहर दिखाई देती माणिक्यकी पुतलियाँ रखी थीं, उनसे वह अप्सराओं से अधिष्ठित मेरुपर्वतके जैसा शोभता था । उसके द्वारके दोनों तरफ चंदनरस से पुते हुए दो कुंभ रखे थे; उनसे वह द्वारपर खिले हुए दो श्वेतकमलोंसे अंकित हो ऐसा मालूम होता था । धूपित करके तिरली बाँधी हुई, लटकती मालाओं से वह रमणीक (सुंदर) जान पड़ता था । पाँच रंगों के फूलोंसे उसके तलभागपर, सुंदर प्रकर ( गुलदस्ते ) बने हुए थे । यमुना नदीसे जैसे
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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