SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 507
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . .. भ० ऋषभनाथका वृत्तांत [४८३ आगे चलते हुए छड़ीदारोंको वेगसे पीछे हटाते थे। चित्तके वेगकी तरह चलनेमें उत्सुक भरतेश, पद पदपर पिछड़ जाने.वाली, चामरधारिणियोंकी राह भी नहीं देखते थे। वेगसे चलने के कारण उछल उछलकर छातीसे टकरानेके कारण टूटे हुए मोतियोंके हारकी भी उनको खबर न थी। उनका मन प्रभुके ध्यानमें था, इसलिए वे पासके गिरिपालकोंको छड़ीदारोंसे, वार . वार बुलाते थे और उनसे प्रभुके समाचार पूछते थे। ध्यानमें लीन योगीकी तरह भरतेश न कुछ देखते थे और न किसीकी बातही सुनते थे; वे केवल प्रभुका ध्यानही करते थे। वेगने मानो मार्गको कम कर दिया हो ऐसे, वे क्षणभरमें अष्टापदके पास जा पहुँचे। साधारण आदमीकी तरह पादचारी होते हुए भी परिश्रमकी परवाह न करनेवाले चक्री अष्टापद पर्वतपर चढ़े। शोक .और हर्षसे व्याकुल उन्होंने पर्यंकासनमें बैठे जगत्पतिको देखा। प्रभुको प्रदक्षिणा दे, वंदना कर, देहकी छायाकी तरह पासमें वैठ, चक्रवर्ती उपासना करने लगा। (४६२-४७६) - प्रभुका ऐसा प्रभाव है तो भी इंद्र हमपर कैसे बैठा हुआ है ?" मानो यह सोचकर इंद्रोंके आसन कॉपे। अवधिज्ञानसे आसनोंके काँपनेका कारण जान चौसठों इंद्र उस समय प्रभुके पास आए । जगत्पतिको प्रदक्षिणा दे, दुखी हो वे प्रभुके पास इस तरह निश्चल बैठे मानो चित्रलिखित (पुतले) हों। (४८०-४८२) उस दिन इस अवसर्पिणीके तीसरे आरेके निन्यानवे पक्ष बाकी रहे.थे; माघ महीनेकी बढ़ी.१३ का दिन था; पूर्वाह्नका' १- सवेरेसे दोपहर तक के समयको पूर्वान करते हैं। . . AA
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy