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________________ भ० ऋपभनाथका वृत्तांत [४८१ भरत राजाने इस श→जय गिरिपर, मेरुपर्वतके शिखरकी स्पर्धा करनेवाला रत्नशिलामय एक चैत्य बनवाया; और उसमें, अंत:करणमें जैसे चेतना रहती है ऐसे, पुंडरीक गणधरकी प्रतिमा सहित भगवान ऋषभस्वामीकी प्रतिमा स्थापन की। (४४८-४४६) भगवानका निर्माण भगवान ऋषभदेव जुदा जुदा देशोंमें विहार करके, जैसे अंधोंको आँखें दी जाती है वैसेही, भव्यजीवोंको बोधिबीजके ( सम्यक्त्वके) दानका अनुग्रह करते थे। प्रभुको केवलज्ञान हुआ तबसे लेकर प्रभुके परिवारमें चौरासी हजार साधु, तीन लाख साध्वियाँ, तीन लाख पचास हजार श्रावक और पाँच लाख चौवन हजार श्राविकाएँ; चार हजार सात सौ पचास चौदह पूर्वी, नौ हजार अवधिज्ञानी, बीस हजार केवलज्ञानी, छः सौ वैक्रिय लब्धिवाले, बारह हजार छः सौ पचास मन:पर्ययज्ञानी, उतनेही वादी और वाईस हजार अनुत्तर विमानवासी महात्मा हुए। प्रभुने जैसे व्यवहार में प्रजाकी स्थापना की थी वैसेही, धर्ममार्गमें इस तरह चतुर्विध संघकी स्थापना की। दीक्षा समयसे एक लाख पूर्व बीता तब, इन महात्माने अपना मोक्षकाल निकट जान अष्टापदकी तरफ विहार किया। उस पर्वतके पास आए हुए प्रभु, परिवार सहित मोतरूपी महलकी सीढ़ीके समान, उस पर्वतपर चढ़े। वहाँ दस हजार मुनियों के साथ भगवानने चतुर्दश तप (छः उपवास) करके पादपोपगमन' १-पादप वृत्त; उपगमन प्राप्त करना । अर्थात वृक्षकी तरह स्थिर रहकर अनशन किया। - -
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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