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________________ भ० ऋषभनाथका वृत्तांत [४३६ वालेको शीतल पदार्थ और बकरेको बादल अच्छे नहीं लगते हैं। दूसरी तरहका धर्म सुननेकी इच्छासे कपिलने इधर-उधर देखा । उसे स्वामीके शिष्यों में अनोखे वेषवाला मरीचि दिखाई दिया। वस्तु खरीद करनेकी इच्छा रखनेवाला बालक जैसे बड़ी दुकानसे छोटी दुकानपर जाता है ऐसेही, दूसरा धर्म सुननेकी इच्छा रखनेवाला कपिल स्वामीके पाससे उठकर मरीचिके पास गया। उसने मरीचिसे धर्मका मार्ग पूछा। मरीचिने जवाब दिया, "मेरे पास धर्म नहीं है। यदि धर्म चाहते हो तो स्वामीकाही आश्रय ग्रहण करो।" मरीचिकी बात सुनकर कपिल वापिस प्रभुके पास आया और पहिलेकी तरहही धर्मोपदेश सुनने लगा। उसके जानेके बाद मरीचिने विचार किया, "अहो ! स्वकर्मदूषित. इस पुरुषको स्वामीका धर्म अच्छा नहीं लगा। गरीब चातकको संपूर्ण सरोवरसे भी क्या लाभ ? (३६-४७) थोड़ी देरके बाद कपिल पुनः मरीचिके पास आया और बोला, "क्या तुम्हारे पास जैसा-तैसा धर्म भी नहीं है ? अगर धर्म न हो तो व्रत कैसे हो सकता है ?" मरीचिने सोचा, “देवयोगसे यह भी मेरेही समान मालूम होता है ! बहुत कालके बाद समान विचारवालोंका मेल हुआ है। इसलिए मुझ असहायका यह सहायक हो।" फिर वह बोला, “ वहाँ भी धर्म है और यहाँ भी धर्म है।" उसने अपने इस एक दुर्भापणसे ( उत्सूत्र भाषणसे ) कोट्यानुकोटि सागरोपम प्रमाणका उत्कट संसार बढ़ाया। फिर उसने कपिलको दीक्षा देकर अपना सहायक बनाया। तभीसे परित्राजकपनका पाखंड शुरू हुआ। (४८-५२)
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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