SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७१ त्रिप्रष्टि शंशाका पुन्य चरित्र: पर्व १. सर्ग ५. वगैरह डालकर मजवृत बनाने लगे; कई अपने घोड़ोंको वुड़शालायामसे निकाल, घोड़ोंको सिलाने मैदान में लेजा, उनको पाँच तरह की गतियोंसे चला, रग योग्य बना उनका श्रम दूर करने लगे। कई, मानों प्रमुकी तेजोमय मूर्ति हों ऐसे,अपने खन वगैग प्रायुघाँको मान पर चढ़ा. तीक्ष्ण बनाने लगे। कई अच्छे मांग लगा नवीन नाँन बाँध यनराजकी शृकुटीक समान अपने धनुषाको तैयार करने लगे। कई प्रयाण के समय स्वर निकालते रहनस, मानों प्राणवान बाजे हों ऐसे, जंगली ऊँवोंको ऋत्रत्र वगैरा उठाकर जानके लिए लान थे। वार्किक पुनर जैसे सिद्धांत को चढ़ करते हैं ऐसे, कई अपने वाोंनो, कई वाणों भायात्रो, कई शिरस्त्राणों (लोदों या टोपों) को और कई कवचोंको, (वे मजबूत थे तो भी ) विशेष मजबूत बनाते थे। और कई गंधवाक भवन होंगसे, रखे हुए नंबुओं और कनातांको चौड़ कर देखने लगे थे। मानों एक दुसरंकी सद्धों करने होंगसे,बाहुबली राजा मन्ति रखनेवाले उस देशके लोग इस तरह युद्धक लिप नैयार हात थे। रानमतिकी इच्छा रखनेवाला कोई अदनी लड़ाइने जाने के लिए वैयार होता था, उसके किसी कुटुंबीने पाकर उसे रोका इमसें बहकुटुंबीपर इस तरह नाश हुश्रा, मानों वह उसका कोई नहीं है। अनुरागवंश अपने ग्राण देकर भी गजामा भला करनेची इच्छा रखनेवाल, लोगोंका यह योग रन्तं गुजरनवाल सुवेगन देवा । युद्धकी बातें मुनकर, लोगों में चलनी तैयारी देखकर, बाहुवलीमें पूर्ण मति रन्यनवा कई पर्वतोंराना मी बाहुबली के पास जान लगेगवालका शब्द सुनकर.जेन्सनाएँ दौड़ाती है ऐसही उन
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy