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________________ २६८ ] त्रियष्टि शलाका पुनय-चरित्रः पर्व १. सर्ग ५. वह भी रक्षणीय है; कारण, "छिद्रंण लघुनाप्यंमः सेतुमुन्मूलयस्यहो।" [छोटसे छेदकं द्वारा भी पानी बाँधका नाश कर डालता है। श्राप सी शंका न कीजिए कि मैं अबतक नहीं गया. अब कस जासकता हूँ. ? श्राप चलिए । कारण, ... "मुस्वामी गृहाति सवलितं नदि।" [अच्छं स्वामी भूलका ग्रहगा नहीं करते हैं-उसकी उपेक्षा करते हैं।] श्राकाशमें सूर्योदय होनस जैस हिम (कुहरा) नष्ट हो जाता है वैसही, श्रापकं वहाँ जान पिशुन लोगोंक मनोरथ नष्ट हो नाग । पत्रंगी ( पूणिमा ) के दिन जंस नूरजसे चाँदको तेज मिलता है सही, उनले मिलने आपके तेजमें वृद्धि होगी। स्वामीकी नरह पाचरण करनेवाले अनेक बलवान पुरुष अपना संन्यपन छोड़कर महाराजका संवा कर देवताओंके लिए इंद्र सेव्य है सही, कृपा और सजा करनी ममयं चक्रवर्ती भी सभी गजायोंके लिए सेवा करने योग्य है। श्राप कंचल चक्रवतीपनका पक्ष लेकर ही उनकी सेवा करेंगे तो श्राप उमस अद्वितीय भातंप्रमको मा प्रकाशित करेंगे। शायद श्राप यह सोचकर कि तो मर माई है, वहाँ न लायें, तो यह भी उचित न होगा। कारण, श्रानाको मुख्य जाननेवाले राजा बानि-मावसे भी निग्रह करते हैं यानी नातिवालासें भी अपनी थाना पलवान है। लोहचुवकस लाहकी तरह उनके उत्कृष्ट तेज से लिंच छप देव, दावन और मनुष्य सभी मरनपतिके पास आत है। जब ईद मी, महागज भग्नको अपना प्राधा श्रासन
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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