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________________ भरत-बाहुबलीका वृत्तांन [३६१ - - बार उसकी बाई आँख फड़कने लगी; अग्निमंडल के बीच में, फॅफ मारनेवाली नाड़ी (धोंकनी) में जैसे फूंक मारता है और धोकनी चलती है वैसेही, उसकी दाहिनी नाड़ी रोगके विनाही जल्दी जल्दी चलने लगी। तुतला बोलनेवाला आदमी जैसे संयुक्त अक्षर बोलनेमें भी अटकता है वैसेही उसका रथ सोधे मार्ग में भी बार बार मकने लगा। काला मृग, जिसे उसके घुड़सवारोंने आगे जाकर भगा दिया था तो भी, किसीका भेजा हुाहो ऐसे, उसकी दाहिनी तरफसे बाईं तरफको गया। कौश्रा सूखे हुए कॉटेदार वृक्षपर वैठकर चोंचरूपी शन्त्रको पत्थरकी तरह घिसता हुआ कटु स्वरमें,उसके आगे बोलने लगा। उसके प्रयाणको रोकने के लिए भाग्यने माना अर्गला डाली हो इस तरह, लंबा साँप उनके पागेसे गुजरा; मानों पश्चात विचार करने में विद्वान सुवेगको वापस लोटाता हो ऐसे, प्रतिकूल वायु, रज उड़ाकर उसकी आँखोंमें डालती हुई बहने लगी। आटेकी लुगदी लगाए विनाके या फूटेहुए मृदंगकी तरह विरस शब्द करता हुधा गधा उसकी दाहिनी तरफ रहकर रेंकने लगा। इन अपशकुनोंको सुवेग अच्छी तरह जानता था; तो भी वह आगे चला। कारण,"सभृत्याः स्वामिनः क्वापि कांडवत्प्रस्खलंति न।" [अच्छे नौकर स्वामीके काममें वाणकी तरह (सीधे जाते हैं, रस्ते में ) कभी नहीं रुकते।] अनेक गाँवों, नगरों, मंडियों और आकरों (खानों) से गुजरता हुआ, वहाँके निवासियोंको, थोड़ी देरके लिए वह आँधीके समान लगा। स्वामीके . कार्यमें लगे हुए आदमीके पीछे तोत्र (कोड़ा) होनेसे, जैसे वह
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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