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________________ ३४४] त्रिषष्टि शलाका पुन चरित्रः पत्र १. मग १. मेयके समान है, और मोहांधकारसे नह बने हुए लोगों के लिए श्राप दीपक तुल्य है। माग छायावाले वृनकी तरह श्राप गरीव, अमीर, मन्त्र और गुगी-सवका उपकार करनेवाले है।" __इस तरह न्नुनि करने के बाद सभी एकत्र हो मौरकी नरह प्रमुक चराक्रमीम दृष्टि रख विनय करने लगे, "हे प्रभो! श्रायन इनको और भरतकी चोग्यता अनुसार श्रद्धा अलग राज्य बाँट दिए हैं, हम पाण्डए. राज्यान मंतुष्ट है कारण, स्वामी की बनाई हुई मर्यादा विना लोगों लिए अनुलंब्य होती है। परंतु हे भगवन ! हमार बड़े भाई भरत अपने राज्यसे और दूलगेन छीन हप गन्यांने भी जलमें बडवाननकी नरह, संतुष्ट नहीं हो रहे हैं। वे, जैसे उन्होंने दूमरॉक राज्य छीन लिए है. वही हमार गच्च भी छीन लेना चाइन हैं। भगत राजान दुलगेकी तरह हमारे पास भी दून मनकर हमस कहलाया है किया तो मेरी संवा कगे या गाव्यका त्याग करो। प्रमो. अपनको बड़ा माननवान भरनकवचनमानस हम, कायरकी नाह, पिनाक दिए हुए गन्यका त्याग कैसे कर सकते है ? इसी तरह हम अधिक ऋद्धिकी इच्यान नयनवाल मरतकी संवा मी क्यों करें जो मनुष्य अत्र होता है वही स्वमानका नाश करने वाली दुलगेकी सेवा अंगीकर, करते हैं। हमें न राज्य छोड़ना है और न संवाही करना है, नव युद्ध करनाही हमारे लिए स्वतः सिद्ध है तो भी हम पापस पूछे बिना कोई काम करना नहीं चाइना ( १- ५) पुत्रांकी यात सुनकर, जिनके निर्मल केवलबान में सारा नगन दिखाई देना है, ऐसे कृपालु भगवान श्रादीश्वरनाथने उन
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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