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________________ भरत चक्रवर्तीका वृत्तांव [३४७ - हो गए हैं ? शायद अपने घरमें दवा समाप्त हो गई थी, तो क्या हिमाद्रि पर्वत भी औपधि-रहित हो गया है ? हे अधिकारियो, दरिद्रीकी लड़कीके समान सुंदरीको दुर्वल देखकर मुझे बड़ा दुःख होता है। तुमने मुझे शत्रुओंकी तरह धोखा दिया है ! (७२८.७४२) - भरतपतिकी ऐसी गुम्से भरी बातें सुन अधिकारी प्रणाम कर कहने लगे, "महाराज ! स्वगंपतिके जैसे आपके सदनमें सभी चीजें मौजूद है; परंतु जवसे आप दिग्विजय करनेको पधारे तवसे सुंदरी विल' तप कर रही हैं। सिर्फ प्राणोंको टिका कर रखनेहीके लिए थोड़ा खाती हैं। आप महाराजने इनको दीक्षा लेनेसे रोका, इसलिए ये भाव-दीक्षा लेकर समय विता रही हैं।" . यह बात सुनकर कल्याणकारी महाराजने सुंदरीकी तरफ देखकर पूछा, "हे कल्याणी ! क्या तुम दीक्षा लेना चाहती हो ?" सुंदरीने कहा, "हाँ महाराज ! ऐसाही है।" (७४३-७४६) यह सुनकर भरत राजा वोले, "अफसोस ! प्रमादसे या सरलतासे में अबतक इसके व्रतमें विघ्नकारी बना रहा हूँ। यह पुत्री तो अपने पिताके समान हुई और हम पुत्र हमेशा विषयमें आसक्त तथा राज्यमें अतृप्त रहनेवाले हुए। आयु जलतरंगके समान नाशवान है, तो भी विपयमें फंसे हुए लोग इस बातको नहीं समझते। (अंधेरैम) चलते नष्ट हो जानेवाली बिजलीकी चमकमें रस्ता देख लिया जाता है वैसेही इस गत्वर ( नाश होनेवाली) आयुसे साधुजनकी तरह मोक्षकी साधना कर १.-दिन भरमें फेवल एम.ही भान एक बार जानकार
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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