SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 368
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४४ ) त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग ४. वगैरा नदियोंस शोभना है वैसेंही वे पूर्वोक्त चौदह रत्नोंसे शोभते थे। विहार करते समय जैसे ऋपमप्रभुके चरणोंके नीचे नी सोनेके कमल रहते हैं वैसेही उनके चरणोंके नीचे नौ निधियाँ रहती थीं । बहुत बड़ी कीमत चुका कर खरीदे हुए प्रात्मरक्षक हों से सोलह हजार पारिपाचक देवताओंसे चे विरे रहते थे। बत्तीस हजार राजकन्यायोंकी तरह बत्तीस हजार राजा निर्भर भक्तिसं उनकी उपासना करते थे। बत्तीस हजार नाटकोंकी तरह बत्तीस हजार देशकी दूसरी बत्तीस हजार कन्यायोंके साथ वं रमण करते थे। जगतमें वह श्रेष्ठ राजा तीनसौंतिरंसठ रसोइयोंसे ऐसे शोभताथाजैसे तीनसा तिरंसट दिनांसे वत्सर(बरस) शोमता है। अठारह लिपियाँ चलानेवाले ऋषभदेव भगवानकी तरह अठारह अंगी-प्रश्रेणी के द्वारा उन्होंने पृथ्वीपर व्यवहार चलाया थाविंचौरासी लाख हाथी,चौरासी लाग्न घोड़े, चारासी लाख रथ और छियानवे करोड़ गाँवोंसे तथा उतनही प्यादासे शोभते थे। वे बत्तीसहजार देशों और बहत्तरहलार बड़े नगरोंके' मालिक थे। निन्यानवे हमार द्रोणमुखों और अड़तालीम हतार जितवाने शहरोक वे ईश्वर थे। श्राईबरयुक्त लक्ष्मीवाले चोवीस नगर-जो परिखा (वाई) गोरों (दरवाजों)अटारी, कोट (किला) प्राकारने (चहारदीवारीसे) मुशामित हो, जिसमें अनेक भवन बने हुए हों, जिसमें तालाब और बगीचे हों, ना उत्तम स्थानपर बसा हुया हो, जिसके पानीका प्रवाह पूर्व-पश्चिम दिशाके बीचवाशी ईशान दिशाकी श्रार हो और जो प्रधान पुरुषकि रहनेकी जगह हो, उसे पुर या नगर कहते हैं। -द्रोणमुख-जो किमी नदी किनारे हो।।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy