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________________ भरत चक्रवतीका वृत्तांत [३३३ पर सवार हुए । मानों कल्पवृक्ष हों ऐसी नवनिधियोंसे भरेहुए भंडारवाले, सुमंगलाके चौदह स्वप्नोंके जुदा जुदा फल हों ऐसे चौदह रत्नोंसे सदा घिरे रहनेवाले, राजाओंकी कुललक्ष्मीके समान और असूर्यपश्या ( जिन्होंने कभी सूरज भी नहीं देखा ऐसी) अपनी विवाहिता बत्तीस हजार रानियोंसे युक्त, और बत्तीस हजार देशोंमेंसे व्याही हुई दूसरी बत्तीस हजार अप्सराओंसे समान सुंदर खियोंसे शोभित, मानों प्यादे हों ऐसे अपने आश्रित बत्तीस हजार राजाओंसे सेवित, विंध्यपर्वतके समान चौरासी लाख हाथियोंसे सुशोभित, और मानों सारी दुनियामेंसे चुन चुनकर लाए हों ऐसे चौरासी लाख घोड़ों, उतनेही (चौरासी लाख) रथों और भूमिको ढकनेवाले छियानवेकरोड़ सुभटोंसे घिरा हुआ चक्रवर्ती, अयोध्यासे निकला । उस दिनसे साठहजार वर्पके बाद, चक्रके मार्गका अनुसरण करता हुआ अयोध्याकी तरफ चला। (५७४-५६६) मार्गमें चलती हुई चक्रवर्तीकी सेनासे उड़ी हुई धूल लगने. से मलिन बने हुए खेचर (पक्षी) ऐसे मालूम होते थे, मानों वे जमीनपर लोटे हैं। पृथ्वीके मध्य-भागमें रहनेवाले भवनपति और व्यतरदेव इस शंकासे डर रहे थे कि चक्रवर्तीकी फौजके भारसे कहीं पृथ्वी न फट जाए। प्रत्येक गोकुल में (गोशालामें) विकसित नेत्रोंवाली गोपांगनाओं (महियारियों ) के द्वारा भेट किए हुए मक्खनरूपी अर्यको अमूल्य समझ, चक्री मानसहित स्वीकार करते थे। हरेक वनमें हाथियोंके कुंभस्थलोंसे मिले छए मोती वगैरहकी भेटें किरात लोग लाते थे, उन्हें महाराज प्रहण करते थे। अनेक बार हरेक पर्वतपर पर्वतगजायोंके द्वारा
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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