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________________ ३३०] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग ४. किया। अष्ठमके अंतमें उसने पोपधशालामेंसे निकल प्रतिष्टामें जैसे श्रेष्ठ प्राचार्य वलिविधान करते हैं वैसेही, बलिविधान किया। फिर प्रायश्चित्त वा कौतुक मंगल कर बहु-मूल्यवान थोड़े वस्त्र धारण कर हाथमें धूपदानी ले, वह गुफाके पास गया । गुफाको देखतेही पहले उसने उसको नमस्कार किया, फिर उसके दरवाजे की और वहाँ अष्ट मांगलिक वनाए। तब किवाड़ खोलनेके लिए सात-आठ कदम पीछे हट उसने दरवाजेको सोनेकी चावी हो ऐसे दंडरत्नको उठाया और उससे दरवाजेपर आघात किया । सूर्यकी किरणोंसे जैसे कमलकोश खिल जाता है वैसेही, दंडरत्नके आघातसे दोनों किवाड़ खुल गए। (५४६-५६१) गुफाका दरवाजा खुलनेकी बात सेनापतिने चक्रवर्तीसे कही। इससे भरतने हाथीपर बैठ, उसके दाहिने कंधेपर ऊँची जगहपर मणिरत्न रख, गुफामें प्रवेश किया। भरत राजा अंधकारको नाश करने के लिए, तमिन्ना गुफाकी तरहही इस गुफामें भी कांकिणीरत्नसे मंडल बनाते जाते थे और सेना उनके पीछे पीछे चली जाती थी। जैसे दो सखियाँ तीसरी सखीसे मिलती है वैसेही इस गुफाकी पश्चिम दिशाकी दीवारमेंसे निकलकर पूर्व तरफकी दीवारके नीचे बहकर उन्मग्ना और निमग्ना नामकी दो नदियाँ गंगासे मिलती हैं। वहाँ पहुँचकर तमिस्रागुफाकी नदियों की ही तरह इन नदियोंपर पुल बनाकर, भरत चक्रवर्तीने सेना सहित उन नदियोंको पार किया। सेनाकी शूलसे घबराए हुए वैताच्यने प्रेरणा की हो इस तरह गुफाका दक्षिण-द्वार तत्काल अपने-आपही खुल गया । केसरी सिंहकी तरह नरकेसरी गुफाके बाहर निकले और गंगाके पश्चिम तटपर उन्होंने छावनी
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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