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________________ भरत चक्रवर्तीका वृत्तांत [ ३२५ -- - -- होती थी, मानों वह आकाशको, मणिमय विमानों द्वारा, अनेक सूर्योवाला बना रही है; मानों चमकते हुए हथियारोंसे विद्युतमय बना रही है। मानों बड़े जोरसे बजते हुए नगारोंकी आवाजसे गूंजता हुआ बना रही है। "अरे दंडार्थी ! क्या तू हमसे दंड लेगा?" यूँ कहते हुए विद्यासे उन्मत्त बने हुए उन दोनों विद्याधरोंने भरतपतिको युद्ध करनेके लिए पुकारा। फिर दोनों तरफकी सेनाएँ अनेक तरहके हथियार चलाती हुई युद्ध करने लगीं। कारण, . ..... युद्धैर्युद्धाा यजयश्रियः ।" [जयलक्ष्मी लड़ाईसेही पाने योग्य है यानी लड़ाईसेही जयलक्ष्मी मिलती है। बारह बरस तक लड़ाई हुई। अंतमें विद्याधर हारे और भरत जीते । तब उन्होंने हाथ जोड़कर भरतको प्रणाम किया और कहा, "हे कुलस्वामी! जैसे सूर्यसे अधिक तेजवाला दूसरा कोई नहीं है, वायुसे अधिक वेगवाला दूसरा कोई नहीं है और मोक्षसे अधिक सुख दूसरा कोई नहीं है, ऐसेही तुमसे अधिक वीर दूसरा कोई नहीं है। हे ऋषभ स्वामीके पुत्र ! श्रापको देखकर हम अनुभव करते हैं कि हमने साक्षात ऋपभस्वामीको ही देखा है। अज्ञानतावश हमने आपको जो तकलीफ पहुँचाई है उसके लिए आप हमें क्षमा कीजिए; कारण, आज आपहीने हमें अज्ञानके (अंधकारसे ) बाहर निकाला है। पहले हम जैसे ऋषभस्वामीके नौकर थे वैसेही, अव हम आपके नौकर हैं; कारण, स्वामीकी तरहही स्वामीके पुत्रकी सेवा भी लज्जाजनक नहीं होती। हे महाराज ! दक्षिण और उत्तर भरतार्द्धके मध्यमें स्थित वैताठ्यके दोनों भागोंमें हम
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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