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________________ . भरत चक्रवतीका वृत्तांत [३१७ देवोंने कहा, "हे किरातो! यह भरत नामका चक्रवर्ती राजा है। यह इंद्रकी तरह अजेय है। देव,असुर या मनुष्य कोई ' भी उसे नहीं जीत सकता। टाँकियोंसे जैसे पर्वतके पत्थर भेरे नहीं जा सकते वैसेही, पृथ्वीपर चक्रवर्ती राजा मंत्र, तंत्र, विष, शस्त्र और अन्य विद्याओंके अगोचर होता है, कोई उस तक पहुँच नहीं सकता। फिर भी तुम्हारे आग्रहसे हम उसको हानि पहुँचानेकी कोशिश करेंगे।" यों कह कर वे चले गए। (४१६-४१८) क्षणभरमें मानो पृथ्वीपरसे उछलकर समुद्र प्रकाशमें आए हों वैसे काजलके समान कांतिवाले मेघ प्रकाशमें पैदा हुए। बिजलीरूपी तर्जनी अंगुलीसे चक्रवर्तीकी सेनाका तिस्कार करते हों और घोर गर्जनासे बार बार क्रोधकर उसका अपमान करते हों ऐसे वे दिखाई देने लगे। सेनाको चूर्ण करनेके लिए उतनेही प्रमाणवाली (अर्थात सेनाके विस्तार जितनीही लंबीचौड़ी) कार आई हुई वनशिलाके जैसे मेघ, महाराजाकी छावनीपर तत्कालही चढ़ आए और मानों लोहे के टुकड़ेके तीखे अगले भाग हों, मानों बाण हों, मानों दंड हों ऐसी धारासे वे वरसने लगे। सारी जमीन चारों तरफ मेघके पानीसे भर गई और उसमें रथ नौकाओंकी तरह और हाथी वगैरह मगरमच्छोंके समान मालूम होने लगे। सूरज मानों किसी तरफ चला गया हो और पर्वत मानों की भाग गया हो ऐसे मेघों के अंधकारसे कालरात्रिके समान दृश्य दिखाई देने लगा। उस समय चारों तरफ पृथ्वीपर अंधकार और जलही जल हो गया। ऐसा मालूम होने लगा मानों पुथ्वीपर फिरसे युग्मधर्म मा गया है।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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