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________________ .. भरत चक्रवर्तीका वृत्तांत . . . [ ३१५. को पार कर जानेकी ताकत रखता था।..चलते समय उसके.. पैर भूमिपर बहुतही कम गिरते थे, इससे जान पड़ता था कि ... वह आकाशमें उड़ रहा है। वह बुद्धिमान और नम्र था। पाँच : तरहकी गतिसे उसने श्रमको जीता था । उसका श्वास कमलके समान सुगंधवाला था। (३७७-३६५) ऐसे घोड़ेपर सवार होकर सेनापतिने यमराजकी तरह . खगरत्न ग्रहण किया । यह शत्रुओंके लिए पत्र ( मृत्युपत्र ) के समान था। खड्ग पचास अंगुल लंबा, सोलह अंगुल विस्तृत (चौड़ा) और आध अंगुल मोटा था। उसका सोनेका म्यान रत्नोंसे मढ़ा हुआ था। वह म्यानसे बाहर निकाला हुभा था, . इससे काँचलीसे मुक्त सर्पके समान मालूम होता था। उसकी धार तेज थी। वह मानों दूसरा वज्ज हो ऐसा मजबूत था और विचित्र कमलोंकी श्रेणीके समान दिखाई देनेवाले रंगोंसे वह शोभता था। इस खङ्गको धारण करनेसे वह सेनापति ऐसा जान पड़ता था, मानों वह पंखोंवाला अहींद्र (शेषनाग) हो या . कवचधारी केसरी सिंह हो । आकाशमें चमकती हुई बिजलीकी चपलतासे खङ्ग घुमाते हुए उसने अपने घोड़ेको रणभूमिकी । तरफ दौड़ा दिया। वह, जलकांतमणि जैसे जलको चीरती है ऐसे, रिपुदलको चीरता हुआ रणभूमिमें जा पहुंचा। (३६६-४०१) सुषेणके आक्रमणसे कई शत्रु मृगोंकी तरह व्याकुल हो गए; कई जमीनपर पड़े हुए खरगोशकी तरह आँखें बंद करके बैठ गए; कई रोहित मृगकी तरह थके हुए-से वहीं खड़े हो रहे और कई बंदरोंकी तरह दुर्गम स्थानों में जा बैठे। कइयोंके हथियार.पेड़के ..
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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