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________________ . . . भरत पक्रवर्तीका वृत्तांत ..... [३१३ हो । म्लेच्छ लोगोंके आक्रमणसे चक्रवर्तीके अगले घुड़सवार, समुद्रकी लहरोंद्वारा नदीके अगले भागकी लहरोंकी तरह पीछे हटें और घबरा उठे। म्लेच्छरूपी सिंहोंके बाणरूपी सफेद । नाखूनोंसें, घायल हुए चक्रवर्तीके हाथी, दुखी स्वरमें चिंघाड़ने लगे। म्लेच्छ वीरोंक प्रचंड दंडायुद्धके द्वारा बार बार किए गए । आघातोंसे,भरतकी पैदल सेनाकं लोग गेंहकी तरह उछल उछल: कर गिरने लगे। वज्राघातसे पर्वतोंकी तरह, यवनसेनाने गदा-प्रहारसे चक्रवर्तीकी अगली सेनाके रथोंको तोड़ दिया। संग्रामरूपी सागरमें, तिमिंगल जातिके मगरोंसे जैसे मछलियोंका समूह अम्त (पीड़ित होता है वैसेही म्लेच्छ लोगोंसे चक्रवर्तीकी सेना ग्रस्त और त्रस्त हुई। ( ३५१७-३७७ ) अनाथकी तरह हारी हुई अपनी सेनाको देख, राजाकी प्राज्ञाकी तरह, गुम्सेने सेनापति सुषेणको उत्तेजित किया। उसके नेत्र और मुँह लाल सुर्ख हो गए और क्षणभरमें वह मनुष्यके रूपमें साक्षात भागके समान दुनिरीक्ष्य (जिसकी तरफ देखा न जा सके ऐसा) हो उठा। राक्षसपतिकी तरह वह सभी दूसरोंकी सेनाका ग्रास करनेके लिए तैयार हो गया। शरीरमें उत्साह आनेसे उसका सोनेका कवच बंदी कठिनतासे पहना गया और वह ऐसा चुस्त बैठा कि दूसरी चमड़ीसा मालूम होने लगा। कवच पहनकर साक्षात जयके समान वह सुषेण सेनापति कमलापीड़ नामके घोड़े पर सवार हुआ। उस घोड़ेकी ऊँचाई अस्सी अंगुल, उसका विस्तार निन्यानवे अंगुल और लंबाई एकसौआठ अंगुल थी। उसका सर सदा मत्तीस अंगुल. की ऊँचाईपर रहता था। उसके माहू (अगले पैर) चार अंगुलके
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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