SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 335
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भरत चक्रवर्तीका वृत्तांत - [३११ 'बढ़ने लगे। उनके रथके अगले भागपर बने हुए मगरोंके मुँह यमराजके मुंहकी स्पर्धा करते थे। वे घोड़ोंके खुरोंके आघातोंसे । मानों जमीनको तोड़ते हों और जयके बाजोंपर गिरते आघातों से मानों आकाशको फोड़ते हों ऐसे मालूम होते थे; और आगे चलनेवाले मंगलके तारेसे जैसे सूरज भयंकर लगता है वैसेही आगे चलनेवाले चक्रसे भरत भयंकर लगते थे।(३४८-३५१३) उनको आते देख भील लोग बहुत नाराज हुए और कर ग्रहोंकी मित्रताका अनुसरण करनेवाले वे सव जमा हो गए और मानों चक्रवर्तीका हरण करनेकी इच्छा रखते हों ऐसे वे क्रोध के साथ कहने लगे, “साधारण आदमीकी तरह लक्ष्मी, लाज, धीरज और कीर्ति-रहित यह कौन पुरुप है जो अल्पबुद्धि बालककी तरह मौतकी इच्छा करता है! जिसकी पुण्य चतुर्दशी क्षीण . हुई है (अर्थात वदी चौदसके चौदकी तरह जिसका पुण्य क्षीण हो गया है) ऐसा और लक्षणहीन यह, ऐसा जान पड़ता है कि, मृग जैसे सिंहकी गुफामें जाता है वैसेही, हमारे देशमें आया है। महा पवन जैसे बादलोंको छिन्न-भिन्न कर देता है वैसेही उद्धत आकारवाले इस फैलते हुए पुरुषको हम दशों दिशाओंमें (छिन्न भिन्न करके) फेक दें।" । इस तरह जोर जोरसे बातें करते हुए वे, शरभ (अष्टापद नामका पशु ) जैसे मेघके सामने गर्जता और दौड़ता है वैसेही, भरतके साथ युद्ध करनेकी तैयारी करने लगे। किरातपतियोंने, कछुओंकी पीठोंकी हड़ियोंके टुकड़ोंसे बने हुए हों ऐसे, अभेद्य कवच पहने, सरोंपर खड़े केशोंवाले, निशाचरोंकी शिरलक्ष्मीको बतानेवालें रीछोंके बालोंवाले शिरस्त्राण उन्होंने धारण किए।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy