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________________ भरत चक्रवर्तीका वृत्ताव [३६ खुल गए। उन किंवाडोसे जो सर-सर की आवाज निकली वह मानों सेनासें जानेकी बात कह रही थी। गुफाके ( दरवाजेके पास ) दीवारोंसे चिपककर किंवाड़ खड़े थे, वे ऐसे मालूम होते थे मानो वहाँ वे पहले कभी नहीं थीं ऐसी अगलाएँ हैं । फिर सूरज जैसे बादलों से निकलता है ऐसे पहले चक्रीके आगे चलनेवाला चक्र गुफामेंसे निकला। उसके पीछे पृथ्वीपति भरत ऐसे निकले जैस पातालके विवरमेंसे वलींद्र ,एक इंद्र) निकलता है। फिर विंध्याचलकी गुफाकी तरह उस गुफामेंसे निःशक लीलायुक्त गमन करते (भूमते) हुए हाथी निकले। समुद्रमंसे निकलते हुए सूयके घोड़ोंका अनुसरण करनेवाले सुंदर घोड़े अच्छी चालसे चलते हुए निकले। धनाढ्य लोगोंकी रथशालाओंमेंसे निकलते हों ऐसे अपने शब्दोंसे गगनको [जाते हुए रथ निकले और स्फटिकमणिके बिलोंमेंसे जैसे सर्प निकलते हैं ऐसेही वैताव्यपर्वतकी उस गुफाके मुखमेंसे बलवान प्यादे भी निकले (३११-३३४) __ इस तरह पचास योजन लंबी गुफाको लौंपकर महाराजा भरतेशने, उत्तर भरतार्द्धको विजय करनेके लिए उत्तर खंडमें प्रवेश किया। उस खंडमें 'आपात' जातिके अति मत्त भील बसते थे। मानों भूमिपर दानव हों ऐसे वे धनवान, बलवान और तेजस्वी थे। उनके पास अपरिमित बड़ी बड़ी हवेलियाँ थीं, शयन, (विस्तर) आसन व वाहन थे और चांदी-सोना था; इनसे वे कुबेरकं गोत्रवाले हों ऐसे जान पड़ते थे। उनके कुटुंब घड़े बड़े थे, उनके पास बहुतसे दासी दास थे और देवताओंके बगीचेकी वृक्षोंकी सरह कोई उनका पराभष (नाश) नहीं कर -
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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