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________________ भरत चक्रवर्तीका वृत्तांत [२८१ करता है वैसे, उसने बायाँ घुटना सिकोड़ दाहिना घुटना जमीन पर रख, चक्रको नमस्कार किया। फिर मानो रूपंधारी हर्षही हो वैसे पृथ्वीपतिने वहीं रहकर चक्रका अष्टाहिका उत्सव किया। कारण- 'पूजितः पूज्यमानो हि केन केन न पूज्यते ?" [पूज्य जिसकी पूजा करते हैं उसकी पूजा कौन नहीं करता ?] (१-१३) फिर उस चक्रके दिग्विजयरूप उपयोगको ग्रहण करनेके लिए भरत राजाने मंगलस्नानके लिए स्नानागारमें प्रवेश किया। आभूषण उतार, नहाने लायक कपड़े पहन,महाराज पूर्वकी तरफ मुँह कर स्नानसिंहासन (नहानेकी चौकी) पर बैठे। तब मालिश । करने और न करने लायक स्थानको और मालिशकी कलाको जाननेवाले संवाहक (मालिश करनेवाले) पुरुषोंने देववृक्षके पुष्पके मकरंद (फूलोंके रस) के समान सुगंधित सहस्रपाक तेलसे महाराजके शरीरपर मालिश की। मांस, हाड़, चाम और रोमको सुख पहुँचानेवाली चार तरहकी मालिशसे और मृदु,मध्य और दृढ़ ऐसे तीन तरहके हस्तलाघव(हाथकी सफाई) से उन्होंने राजाके शरीरपर अच्छी तरह मालिश की; फिर उन्होंने आदर्श की तरह अम्लान (स्वच्छ) कांतिके पात्ररूप उस महिपतिके सूक्ष्म दिव्य चूर्णका उबटन लगाया। उस समय ऊँची नालके कमलोंवाली सुंदर वापिकाके समान सुशोभित कई स्त्रियाँ जलसे भरे सोनेके घड़े लेकर खड़ी हुई; कई स्त्रियाँ, मानों जल धनरूप होकर कलशका आधार रूप हुआ हो ऐसे दिखाई देनेवाले, घाँदीके कलश लेकर खड़ी थीं, कई खियोंने अपने सुन्दर हाथोंमें
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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