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________________ . . . . "भ० ऋषभनाथका वृत्तांत - [२५५ व्यंतर देवता द्वारपाल बने थे। पश्चिमके दरवाजेपर, साँझके समान जैसे सूरज और चाँद एक दूसरेके सामने आते हैं वैसही, लाल रंगवाले ज्योतिष्क देवता दरवान बने खड़े थे। और उत्तरके दरवाजेपर, मानो उन्नत मेघ हों ऐसे, काले रंगवाले भुवनपति देवता, दोनों तरफ द्वारपाल होकर स्थित थे। (४४३-४८) - . दूसरे गढ़के चारों दरवाजोंपर, दोनों तरफ क्रमशः अभय पाश:( तरुणास्त्र), अंकुश और मुद्गर धारण किए हुए, श्वेतमणि,शोणमणि,म्वर्णमणि और नीलमणिके समान कांतिवाली और ऊपर कहा गया है वैसे चारों निकायों (जातियों) की जया, विजया, अजीता औ अपराजिता नामकी दो दो देवियाँ प्रतिहार (दरबान ) की तरह खड़ी थीं। (४४६-५०) ... अंतिम बाहरके गढ़के चारों दरवाजोंपर,-तुबरू धारी, खट्वांग (हथियार-विशेष ) धारी, मनुष्योंके मस्तकोंकी माला धारण करनेवाले, और जटा-मुकुटवाले, इन्हीं नामोंवाले, चार देवता दरबानकी तरह खड़े थे। (४५१) . समवसरणके वीचमें व्यंतरोंने एक तीन कोस ऊंचा चैत्यवृक्ष बनाया था, वह मानो तीन रत्नों (ज्ञान, दर्शन और चारित्र कंपी रत्नों) के उदयके समान मालूम होता था, और उस वृक्षके नीचे विविध-रत्नोंकी एक पीठ (आसन) बनाई थी, और उस पीठपरं अनुपम मणियोंकाछंदक (वेदिकाके आकारका आसन) बनाया था। छंदकके बीचमें पूर्व दिशाकी तरफ, लक्ष्मीका सार हो ऐसा पादपीठ (पाँव रखनेकी जगह) सहित रत्नोंका सिंहासन बनाया था और उसपर तीन लोकके स्वामीपनके चिह्नोंकेसमान उज्ज्वल तीनछत्र रचे थे। सिंहासनके दोनों तरफ दो यक्ष हाथोंमें
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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