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________________ भ० ऋपभनाथका वृत्तांत .. [२३५ भगवान ऋषभदेव मौन धारण किएहुए आर्य और अनार्य सभी देशोंमें विचरण करते थे। एक साल तक निराहार रहे हुए प्रभुने विचार किया, "दीपक जैसे तेलसेही जलता है, वृक्ष जैसे जलसेही टिकता है, वैसेही प्राणियोंके शरीर भी आहारसेही टिकते हैं। साधुओंको भी बयालीस दोपरहित माधुकरी' वृत्तिसे भिक्षा माँग योग्य समय पर आहार लेना चाहिए । बीते दिनोंहीकी तरह, अव भी यदि मैं पाहार न लूँगा तो मेरा शरीर तो टिका रह जायगा, मगर जैसे चार हजार मुनि भोजन न मिलनेसे पीड़ित होकर मुनिधर्मसे भ्रष्ट हो गए हैं वैसेही दूसरे साधु भी भ्रष्ट हो जाएँगे।" इस विचारको हृदयमें धारण कर प्रभु सभी नगरोंके मंडनरूप गजपुर नगरमें भिक्षाके लिए. गए। वहीं बाहुबली के पुत्र सोमप्रभ राजाके पुत्र श्रेयांसको सपना आया कि चारों तरफसे श्याम बने हुए सुवर्णगिरिको (मेरु पर्वतको ) उसने दूधसे भरे हुए घड़ेसे अभिषेक करके उजला बनाया है। सुबुद्धि नामके सेठने सपने देखा कि सूरज. से निकली हुई हजार किरणोंको, श्रेयांसकुमारने वापस सूर्यमें रखा है, इससे सूरज बहुत प्रकाशमान हुआ है। सोमयशा राजाने सपने में देखा कि अनेक शत्रुओं के द्वारा चारों तरफसे १-धुकर यानी भौरा जिस तरहसे अनेक मासे पोदारम लेता है और अपना पेट भरता है, इससे किसी लकी सकशीक नही होती; उसी तरह नुनि भीमाने परोसे, यना दुश्मा, गोडा पोसा निदोष शाहार मन्य करने है। इससे किसी गायोगोई सफली नहीं होती। दीको मारी गाने हैं। माग नाम गरोमा।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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