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________________ २२६ ) त्रिषष्टिं शलाका पुरुष-चरित्र: पर्व १. सर्ग ३. गधे या खच्चर जैसे अपना भार छोड़ देते है वैसेही, प्रतका त्याग कर दिया। हम यद्यपि प्रमुकी तरह आचरण करने में समर्थ नहीं हो सके तथापि हमने वापस घर-गिरस्ती बनना न चाहा और अब हम इस तपोवनमें बसते हैं।" (१३०-१३३) ये बात सुन, वे यह सोचकर प्रमुके पास गए कि हम भी अपना हिस्सा माँग। उन्होंने प्रभु के चरणों में प्रणाम किया। प्रभु मौन धारणकर कारसग ध्यान में (समाधि लगाए ) खड़े थे। नमि-विनमि यह नहीं जानते थे कि प्रभु श्रय नि:संग हैसब कुल छोड़ चुके हैं । इसलिए वे बोले, "हम दोनोंको आपने दूर देशोंमें भेज दिया और भरतादिको सारी पृथ्वी बाँट दी, हमको गौके जुरके बराबर भी पृथ्वी नहीं दी, इसलिए. हे विश्वनाथ ! अब मेहरबानी करके हमें भी जमीन दीजिए. । (भगवानको चुप देखकर वे फिर बोले ) “श्राप देवोंके भी देव हैं। आपने हमारा कोनसा ऐसा अपराध देखा है कि, जिसके कारण आप जमीन देना तो दूर रहा, बात तक नहीं करते।" दोनोंके इस तरह कहनेपर भी प्रमुने उस समय कोई जवाब नहीं दिया। कारण, "निर्ममा हि न लिप्यते कस्याप्यहिकचिंतया 1" . [मोह-माया रहित लोग किसी भी दुनियची यातका विचार नहीं करते ।] (१३४-१३६) . वे यह सोचकर प्रयुकी सेवामें लग गए कि प्रभु कुछ नहीं बोलते हैं तो भी हमारी गति तो यही है। स्वामीके आसपासकी जमीनकी धूल न उड़े, इसलिए सरोवरसे कमलके पत्तोंमें पानी भरकर लाते थे और जमीनपर रिदकते थे। वे नित्य
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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