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________________ . .: अषभनाथका वृत्तांत [२१७ निकलने लगे। जगत्पतिके पीछे दौड़नेवाली कई स्त्रियोंके, वेगके कारण, हार टूट रहे थे, वे ऐसी मालूम होती थीं, मानों वे लाजांजलिंसे (खीलोंकी अंजलिसे) प्रभुका स्वागत कर रही हैं। कई, प्रभु आते हैं यह सुनकर अपने बच्चोंको लिए स्थिर ...खड़ी थीं, वे बंदरोंके सहित लताएँ हों ऐसी जान पड़ती थीं; कुचकुभके भारसे मंदगतिवाली युवतियाँ अपनी दोनों तरफ • चलनेवाली स्त्रियोंके कंधोंपर हाथ रखकर चल रही थीं; मानों - उन्होंने दो पंख निकाले हैं। कई स्त्रियाँ प्रभुको देखनेके उत्साह की गतिको भंग करनेवाले अपने नितंबोंकी निंदा करती थीं। ___ मार्गमें आनेवाले घरोंमें रहनेवाली कई कुलवधुएँ सुंदर कसूवी __वस्त्र पहन, पूर्णपात्र लिए खड़ी थीं, वे चंद्रमाके सहित संध्याकी : सगी बहनोंसी, जान पड़ती थीं; कई चपलनयनियाँ, प्रभुको देखनेके लिए ( उत्सुक) अपने साड़ीके पल्लेको, हस्तकमलसे चँवरकी तरह हिला रही थीं (मानों वे भक्तिसे प्रभुपर चँवर दुरा ..रही हो।); कई नाभिकुमारपर लाजा (चावलकी खोलें) डाल रही थीं, मानों वे अपने लिए, निर्भरतासे, पुण्यके वीज बो रही थीं; कई सुवासिनिया(सधवाएँ) 'चिर जीवो,चिर आनंद पाओ!' ऐसी असीसें देती थीं; और कई चपलाती (चंचल आँखोंवाली) नगर-नारियों स्थिर आँखोंसे, शीघ्र चलनेवाली या धीरे चलनेवाली होकर प्रभुके पीछे जा रही थीं। (२६-४६) . . अब चारों तरहफे देव अपने विमानोंसे पृथ्वीतलको छाया. . बाला बनाते हुए आकाशमें आने लगे। उनमें कई देव उत्तम मद... जल बरसाते झाथियोंको नेफर आते थे; इससे जान पड़ता था कि वेभाकाशको मेषमय बना रहे हैं। कई देवता आकाशरूपी समु.
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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