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________________ २८ ] त्रियष्टिं शताका पुरुष-चरित्र: पत्र १. सर्ग ३. नुनाको मुशामिन करता था। मृगन्दोचनाएँ (हिरनीके समान आँन्यावाही स्त्रियाँ) जल चुनने लग रही थी; मानों व बड़े पत्र में चमनको अयं इनकी नैयारी कर रही है। ल बुनत हुए, उन स्त्रियोंकी गली कल्पना भी हुई होगी कि हमारे होते हुए कामदयनी दुर कुलों अनुपकी क्या जरुरत है ? वासंती लना चल चुन लिए गए थे और उनपर और गूंज रह थे; मा मान्नुम होना था कि अगन लोक वियोगमें, मोरोकी गुंजारकं बहाने, यहाग रही है। कोई न्त्री मदिनांक फूल चुनकर जाना चाहती थी, परंतु उनकी बाडीका बल्ला बन्दमें अटक गया और बह छड़ी रह गई। इसमें मालूम होना था, मानों मल्लिका बल्ला पकड़कर उन कह रही है कि न कहीं दूसरी जगह न जा। एक न्त्री चमक कल चुनना चाहती थी; मगर वहाँ बैंठ हुम भाग्नं उस होठोंपर डंक माना, मानों वह अपना श्राश्य मंग ऋग्नवाली पर नागज हुआ है। कोई स्त्री अपनी मुजाना लनाको ऊंचा कर, उसकी भुजा मूलमागको दालनबान्त पुन्या मनकामी झालांमाय चुन रही थी। नवीन लोक गुच्छांचा हायाने गवनय भूल चुननवानी स्त्रियाँ मानों अंगम (ऋदती निरनी लना होगमा मालन होती थीं। हॉकी शान्तायाम न चुननं वाही स्त्रियाँ कौतुक मृतुन लगी थी, इमस वृद्ध मानों स्त्रीया बन्दयाले मालूम होत थे। किन युपमें छुट्टी मलिकाकी ऋतियाँ चुनकर अपनी प्रियाके लिग उनस, मोनियाकी मातामा भाला और दूसरे यामुषणा बनाना किलीन भामंदवायं ममान अपनी प्यारीक कंगनायको तिहानि मायालाई पाँच बल्ला
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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