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________________ २०६] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पर्व १ सर्ग २. वगैराकी मर्यादाको नहीं नोड़ना था। बारिश भी अपनी गर्जना बहान मानों प्रमुक न्यायधमंका नारीफ करतीधी थोर समयपर, धानके वनोंको जल देनके लिए बरसती थी। (लहलहाने) धान्य. केलेतास, गन्नों वागास और गोजुलाई (गों आदि पशुओंकी श्रावानांसे) गूंजने हुए शहर और गाँव अपनी ऋद्धिये शोमन ये और वेत्रामीकी ऋद्धिको भूचित करने थे । प्रमुन सभी लोगोंचो त्यान्य (छोड्न लायक) और ग्राह्य (लन लायक) वस्तुयांका विवेक-नान कराया, इससे यह मरत क्षेत्र प्रायः विद हक्षेत्र अनुसार हो गया। इन नरह नामिगन्नाकं पुत्र ऋषमदेव)ने राज्याभिषेक के बाद निरसठ लान्त्र पूर्व नक पृथ्वीका पालन किया । (ey-2) एक बार कामदेवका निवासस्थान वसंत ऋतु श्राया। परिवारके लोगों अनुरोधम-विनतीन प्रम बागम गण । वहाँ देहधारी वसंतश्चनु हो ऐसे फूलों के गहनास बजे हुए प्रमुग्लाके घर बैठा उस समय नलों और माकंद (थान के मकरंद (फूलोंकी शहद ) से उन्मत्त बनेहप व गन रहे थे। इसस मालूम होता था कि वसंतलमी प्रमुछान्वागत कर रही है। पंचमन्त्ररमं गानेवाली कोयलॉन मानों पूर्वरंगका (नाटक श्रारंभ होने पहले मंगलाचरणाका ) प्रारंम किया है, यह समन्तकर मलयात्रलके पवनने नट बनकर लनानपी नृत्य बताना प्रारंभ किया। मृगलोचना अपने कामुक पुन्योंकी तरह, अबक (श्राक) अशोक और यशुलने पड़ोंचो श्रालिंगन करती थी, उनपर लात मारती थीं और अपने मुरन्त्रका श्रामब पिलाती थी। निलक कृत (वर्मन चलनेवाला एक येड़ ) अपनी प्रबल किया जानने नाम क्रिया
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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