SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९८] त्रिपष्टि शलाका पुस्य-चरित्रः पर्व १. सर्ग २. आदमी एक घरसे दूसरे घरमें जाता है वैसे क्षणभरमें-अयोध्या-पाया। (१०३-०४) फिर सौधर्म कल्पके उस इंद्रने स्वर्णकी वेदिका (चबूतरा) बनाकर, अतिपांडुकवला शिलाकी' तरह, उसपर एक सिंहासन बनाया । और पूर्व दिशाके अधिपतियोंने स्वस्तिवाचक (पुरोहित) की तरह, देवताओंके द्वारा लाए हुम तीर्थजल द्वारा प्रभुका अमिपेक क्रिया । फिर इंद्रने प्रभुको दिव्य बन्न धारण कराए। वे निर्मलनासे चंद्रके मुन्दर तेजमय मालूम होते थे; और तीनलोकके स्वामीके अंगको, मुकुट आदि रत्नालंकार यथास्थान धारण कराए । उसी समय युगलिए कमलिनीके पत्तोंमें जल लेकर आए । वे प्रभुको भूपिन देखकर इस तरह सामने खड़े हो रहे मानों वे उनको अयं दे रहे हैं। उन्होंने यह सोचकर कि दिव्य वस्त्रालंकारों से मुशोमिन प्रभुके मस्तकपर जल डालनायोग्य नहीं हैं, कमलिनीके पत्तोंक दोनोन भरा हुया जल प्रमुके चरणों में चढ़ाया। इससे इंद्रने समझा कि ये लोग काफी विनीत हो गए हैं। इसलिए इन लोगोंके रहने के लिए विनीता नामकी नगरी बसा. नेकी जुबेरको यात्रा दी; फिर वह अपने देवलोकको चला गया। (१०५-४११) युवरने बारह बोजन लंबी और नी योजन चौड़ी विनीता नामक नगरी बसाई । उसका दूसरा नाम 'अयोग्या' रखा । यक्षपति अवरन उस नगरीको अक्षय वस्त्रों, अलंकारों और वन तीर्थकर भावान का जन्माभिषेक करनेकी, मेरुपर्वतपरकी शिला।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy