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________________ सागरचंद्रका वृत्तांत [१६३ कन्याके साथ जो स्त्रियाँ थीं उनमेंकी चतुर परिहासरसिका (दिल्लगी-पसंद) त्रियाँ इस तरह परिहास के गीत गाने लगी, "बुखारवाला आदमी समुद्रका सारा जल पी सकनेका विश्वास रखता है, वैसेही ये अनुवर सारे लड़ खा जाने का विश्वास किस मनसे कर रहे हैं ? कुत्ता काँदे (प्याज) पर अखंड दृष्टि रखता है वैसेही मंडॉपर लगी हुई इन अनुवरों की निगाहें कुत्तोंकी निगाहोंसे स्पर्धा कर रही हैं । इन अनुवरोंके दिल बड़े खानेको इस तरह ललचा रहे है जैसे रंक (गरीब) बालकका मन-जन्मसेही कभी बड़े नहीं मिलनेसे-ललचाया करता है। जैसे चातक मेघजलकी इच्छा करता है और याचक पैसे की इच्छा करता है वैसेही अनुवरोंका मन सुपारीकी इच्छा कर रहा है। बछड़ा जैसे घास खानेकी लालसा रखता है वैसेही तांबूलपत्र पान) खानेको ये अनुवर लालायित हो रहे हैं। मक्खनके गोलेको देखकर जैसे विल्लीकी राल टपकरी है, वैसेही चूर्ण खानेको इन अनुवरोंकी राल टपक रही है । कीचड़में जैसे भैंसे श्रद्धा रखते हैं, वैसेही य अनुवर विलेपनमें किस मनसे श्रद्धा रख रहे हैं । उन्मत्त आदमी जैसे निर्माल्यपर प्रीति रखते हैं वैसे ही पुष्पमालाओंपर इन अनुवरोंकी चपल आँखें लगी हुई हैं।" (८५३-८६२) ऐसे परिहासपूर्ण गाने सुनने के लिए कुतूहलसे देवता कान खड़े कर ऊँचा मुख किए हुए थे। वे सब चित्रलिखित. से मालूम होते थे। (८६३) । 'लोगोंको यह व्यवहार दिखाना योग्य है।' यह सोचकर वाद-विवादमें चुने हुए मध्यस्थ श्रादमीकी नरह प्रभु उसकी उपेक्षा कर रहे थे । (६१)
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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