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________________ १८०] त्रिपष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पर्व १. सर्ग २. स्वस्तिक, दिग्गज, प्रासाद, तोरण और दीप वगैरा चिह्नोंसे अंकित थे। उनके अंगूठे और अँगुलियाँ लाल हाथ से उत्पन्न हुए, इसलिए लाल और सरल थे। वे प्रांतभागमें माणिक्यके फूलवाले कल्पवृक्षके अंकुरके जैसे मालूम होते थे। अंगूठेके पर्वभागमें यशम्पी उत्तम अश्वको पुष्ट करनेके कारणरूप यवोंके चिह्न स्पष्टतया शोभते थे। अंगुलियोंके ऊपरके भागमें प्रदक्षिणावर्तके (दाहिनी तरफके चक्रके) चिह्न थे, वे सर्वसंपत्ति बतानेवाले दक्षिणावर्तके शंम्बपनको धारण करते थे। उनके कर-कमलके मूलभागमें (कलाईमें ) तीन रेखाएँ शोभती थीं, वे ऐसी मालूम होती थीं मानों में तीनलोकका उद्धार करने के लिए ही बनाई गई है । उनका गोलाकार, श्रदीर्घ (बहुत लंबा नहीं ऐसा ) और तीन रेखाओंसे पवित्र बना हुआ गंभीर ध्वनिवाला कंठ शंखकी समानताको धारण करता था। निर्मल,तुल (गोल) और कांतिकी तरंगोंवाला मुग्न कलकरहित दूसरे पूर्ण चंद्रसा लगता था। दोनों कपोल (गाल ) कोमल, स्निग्ध और मांससे भरे थे, वे एक साथ रहनवाली वाणी और लक्ष्मी के दो दर्पण जैसे थे; और अंदरके श्रावर्त (गोलाई) से सुंदर और कंधेतक लवे दोनों कान मुखकी कांतिरूपी समुद्र के तीरपर रही हुई दो सीपोंके जैसे थे। होठ बिवफलके समान लाल थे। बत्तीसी दाँत कुंदकलिके सहोदर (सगे भाई) के समान थे और उनकी नाक क्रमशः विस्तारवाली और उन्नत वंशकं समान थी। उनकी चिचुक (ठड़ी) पुष्ट, गोलाकार, कोमल और समान थी तथा उसपर उंगी हुई डाहीके केश श्याम, सघन, स्निग्ध और कोमल थे। प्रमुकी जीभ नवीन कल्पवृक्ष प्रधान समान लाल,कोमल,
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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