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________________ सागरचंद्रका वृत्तांत [१५७ देवों सहित चमरेंद्रकी तरह अमंद आनंदके मंदिर रूपमेरु पर्वतपर आया । ( ४५२-४५४) नागकुमारके धरण नामके इंद्रने मेघस्वरा नामक घंटा बजवाया। उसकी छःहजार पैदल सेनाके सेनापति भद्रसेनके कहनेसे आए हुए छःहजार सामानिक देवों, उससे चौगुने (२४०००) आत्मरक्षक देवों, अपनी छः पट्टदेवियों (इंद्राणियों) और दूसरे भी नागकुमार देवों सहित वह, इंद्रध्वजसे शोभित पच्चीसहजार योजन विस्तारवाले और ढाईसौयोजन ऊँचेविमानमें बैठ भगवानके दर्शनके लिए उत्सुक हो, क्षणभरमें मंदराचलके (मेरुके) मस्तक (शिखर) पर आया। (४५५-४५८) भूतानंद नामके नागेंद्रने मेघस्वरा नामका घंटा बजवाया और उसके दक्ष नामके सेनापति द्वारा सामानिक देवता आदिकोंको बुलवाया। फिर वह आभियोगिक देवके बनाए हुए विमानमें, सबके साथ बैठकर, जो तीनलोकके नाथसे सनाथ हुआ है उस मेरु पर्वतपर आया । ( ४५६-४६०) फिर विद्युत्कुमारके इंद्र हरि और हरिसह; सुवर्णकुमारके इंद्र येणुदेव और वेणुदारी; अग्निकुमारके इंद्र अग्निशिख और अग्निमानव; वायुकुमारके इंद्र वेलंच और प्रभंजन; स्तनितकुमारके इंद्र सुघोष और महाघोष; उदधिकुमारके इंद्र जलकांत और जलप्रभा द्वीपकुमारके इंद्र पूर्ण और अवशिष्ट और दिककुमारके इंद्र अमित और अमितवाहन भी आए । (४६१-४६४) ___ व्यंतर देवोंमें पिशाचोंके इंद्र काल और महाकाल, भूतोंके इंद्र सुरूप और प्रतिरूप, योंके इंद्र पूर्णभद्र और गणिभद्र -
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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