SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्र: पर्व १. सर्ग २. वज हायमें लेकर भगवानके आगे रहा । फिर जय नय शब्दोंसे श्राकाशको गुंजाता हुआ देवनाओंसे विराहुआ और प्राकाशके समान निर्मल मनवाला इंद्र अपने पाँच पास आकाशमार्ग द्वारा चला | तृपा (ध्यास) से बबराए हुए मुसाफिरोंकी नजर जैसे अमृतके सरोवरपर पड़ती है वैसही, उसुक बने हुए देवताओंकी द्रष्टि भगवानके अद्भुत रूपपर पड़ी। भगवानके अद्भुत रूपको देखने के लिए आगे चलनेवाले देवता पीछेकी तरफ आँखें चाहते थे। दोनों तरफ चलनवाले देवता स्वामीको देखनसे तृप्त नहीं हुई हो इसतरह मानोंत्तंभित होगई हो इस तरह, वें अपनी ऑलं दूसरी तरफ नहीं घुमा सके थे। पीछे रह हुए देवता भगवानको देखने के लिए आगे आना चाहते थे, इसलिए वे अपने न्वामी या मित्रकोमी पीछे छोड़कर आगे बढ़नाते फिर देवपति इंद्र भगवानको अपने हृदयके पास रखकरमानों उसने भगवान को हत्यमें रख लिया है, मनपर्वतपर गया। वहाँ पांइक बनमें, दक्षिण चुलिनाके पर निर्मल क्रांतिवाली अतिपांडुकवता नामकी शिलापर, अहंत स्नानके योग्य सिंहासनपर, पूर्व दिशाका पति इंद्र, हर्ष सहित प्रभुको अपनी गोदमें लेकर बैठा। (४०७-४३०) जिस सनब सौधर्मेन्द्र मेन्यवनपर श्राचा उसी समय महायोवा घंटा नाद (आवात्र ) से, (भगवानके जन्मत्रो) जानकर, अटाइमलाल विमानवासी देवताओंसे घिरा हुआ त्रिशूलबारी,वृषभके बाहनवाला ईशानकायका अधिपति ईशानेंद्र याभियोगिक दबके बनाए हुए पुश्यक नामक विमान में बैठकर दङ्गिण दिशाक रनसे ईशानन्यसे नीचे उतर, विद्या बता
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy