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________________ सागरचंद्रका वृत्तांत [१४७ - गर्जनाके समान गंभीर शब्दों में कहा, "हे देवो! सबके लिए अनुलध्य शासनवाले इंद्र, देवी वगैरा परिवार सहित तुमको आज्ञा देते हैं, कि बूद्वीपके दक्षिणा भरतखंडके वीचमें कुलकर नाभि राजाके कुलमें आदि-तीर्थंकर जन्मे हैं। उनके जन्मकल्याणकका उत्सव करनेके लिए मेरीही तरह तुमभी वहाँ जानेकी जल्दी तैयारी करो। कारण, इसके समान कोई दूसरा उत्तम काम नहीं है। (३४१-३४६) सेनापतिकी बातें सुनकर कई देवता भगवानकी भक्तिके कारण तुरतही इस तरह चले जैसे मृग वेगसे, वायुकी तरफ जाते हैं; या लोहचुंबकसे लोहा खिंचता है। कई देवता इंद्रकी . आक्षा से खिंचकर चले, कई देव अपनी देवांगनाओंके उत्सा हित करनेसे इस तरह चले जैसे नदियोंके वेगसे जलजेतु दौड़ते .. है । कई अपने मित्रोंके आकर्पणसे ऐसे चले जैसे पवनके आकर्पणसे सुगंध फैलती है। इसतरह सभी देव अपने सुंदर विमानों और दूसरे वाहनोंसे, आकाशको दूसरे स्वर्गकी तरह सुशोभित करते हुए, इंद्रके पास आए। (३५०-३५२) उस समय इंद्रने पालक नामक आभियोगिक देवको, असंभाव्य (बहुत कठिन) और अप्रतिम (अद्वितीय) एक विमान बनानेकी आज्ञा दी । स्वामीकी आज्ञाका पालन करनेवाले उस देवने तत्कालही इच्छानुगामी (बैठनेवालेकी इच्छाके अनुसार चलनेवाला) विमान बनाया । वह विमान हजारों रत्न-स्तंभोंके किरणसमूहसे आकाशको पवित्र करता था। गवाक्ष (खिड़कियाँ) उसके नेत्र थे, बड़ी बड़ी ध्वजाएँ उसकी भुजाएँ थीं, वेदिकाएँ उसके दाँत थे और स्वर्णकुंभ ऐसे मालूम होते थे मानों वह हँस
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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