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________________ सागरचंद्रका वृत्तांत [१२७ संगीत करते थे मानो वे जबर्दस्ती बेगारमें पकड़कर लाए गए थे; दीपशिखा और ज्योतिष्क कल्पवृक्ष, बारवार प्रार्थना करनेपर भी, (रातके समय भी) दिनमें जैसे बत्तीका प्रकाश मालूम नहीं होता उसी तरह प्रकाश देते न थे; चित्रांग वृक्ष अविनयी और तत्काल आज्ञानुसार काम न करनेवाले सेवककी तरह इच्छानुसार फूलमालाएँ नहीं देते थे चित्ररस वृक्ष, दान देनेकी इच्छा जिसकी क्षीण होगई है ऐसे सत्रीकी (सदावत देनेवालेकी) तरह, चार तरहके विचित्र रसवाला भोजन पहलेकी तरह नहीं देते थे; मण्यंग वृक्ष, इस चिंतासे कि फिर कैसे मिलेंगे, व्याकुल होकर पहलेकी तरह आभूपण नहीं देते थे; व्युत्पत्ति ( कल्पना शक्तिकी) मंदतावाले कवि जैसे अच्छी कविता धीरेसें कर सकता है वैसेही गेहाकारवृक्ष घर धीरेसे देते थे और बुरे ग्रहोंसे रुका हुआ मेघ जैसे थोड़ा थोड़ा जल देता है वैसेही अनग्न वृक्ष वस्त्र देने में स्खलना पाने लगे-कमी करने लगे। उस कालके प्रभावसे युगलियोंको भी शरीरके अवयवोंकी तरह कल्पवृक्षोंपर ममता होने लगी। एक युगलिया जिस कल्पवृक्षका आश्रय लेता था उसीका दूसरा भी कर लेता था तो पहले श्राश्रय लेनेवालेका पराभव (हार) होता था; इससे परस्परका पराभव सहन करनेमें असमर्थ होकर युगलियोंने विमलवाहनको, अपनेसे अधिक (शक्तिशाली) समझकर, अपना स्वामी मान लिया। (१४८-१६०) जातिस्मरण ज्ञानसे नीतिको जाननेवाले विमलवाहनने, उनमें कल्पवृक्ष इसी तरह बाँट दिए जैसे वृद्धपुरुष अपने गोत्रवालोंमें (परिवारमें) धन बाँट देता है। यदि कोई दूसरेके कल्प
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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