SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सागरचंद्रका वृत्तांत ... [ ११७ [दूसरोंका आशय-दूसरोंके मनकी बात-जानना कठिन है। ] ( ५५) फिर पुत्रकी भावनाको जाननेवाले सेठने शीलादिक गुणोंसे पूर्ण प्रियदर्शनाको, पूर्णभद्र सेठसे (अपने पुत्र के लिए) माँगा। पूर्णभद्र सेठने यह कहकर उसकी माँगको स्वीकार किया, कि आपके पुत्रने तो उपकारके द्वारा पहलेही मेरी पुत्रीको खरीद लिया है। शुभ दिन और शुभ मुहूर्तमें मातापिताने सागरचंद्रका प्रियदर्शनाके साथ ब्याह कर दिया। इच्छित दुंदुभि बजनेसे जैसे आनंद होता है वैसेही मनवांछित ब्याह होनेसे वधू-वरको बहुत प्रसन्नता हुई। समान अंत:करण (भावना) वाले होनेसेएक आत्मावाले हों इस तरह उनकी प्रीति सारस पक्षीकी तरह बढ़ने लगी। चाँदसे जैसे चाँदनी शोभती है वैसेही निरंतर उदयवाली और सौम्य ( मोहक ) दर्शनवाली प्रियदर्शना सागरचंद्रसे शोभने लगी। चिरकालसे घटना करनेवाले दैवके योगसे उस शीलवान, रूपवान और सरलतावाले दंपतिका उचित योग हुआ.। एक दूसरेपर विश्वास था इसलिए उनमें कभी अविश्वास तो उत्पन्नही नहीं हुआ। कारण, सरल आशय (विचार ) वाले कभी विपरीत शंका नहीं करते। (५६-६३) एक बार सागरचंद्र जब बाहर गया हुआ था तब अशोकदत्त उसके घर आया और प्रियदर्शनासे कहने लगा, "सागरचंद्र हमेशा धनदत्त सेठकी स्त्रीसे एकांतमें मिलता है, इसका क्या कारण है ?" (६४-६५)
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy