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________________ प्रस्तावना जैनशास्त्र चार भागोंमें विभक्त है। वे हैं: १. द्रव्यानुयोग, २. चरितानुयोग अथवा कथानुयोग, ३. गणितानुयोग और ४. चरणकरणानुयोग। १. द्रव्यानुयोगमें-तत्त्वज्ञान है । इसमें छ: द्रव्य, व नवतत्व इत्यादिसे सम्बन्ध रखनेवाली बात है। या यह कहना चाहिए कि इसमें संमारके सभी पदार्थोकी उत्पत्ति, स्थिति और विनाशका तात्त्विक विवेचन है। २. चरितानुयोगमें-महात्माओंके चरित्र आकर्षक शैलीमें कहे या लिखे गये हैं। इनका उद्देश्य कथाओं द्वारा मनोरंजन करना गौण है और उदाहरणों द्वारा जीवनको उच्च बनानेकी शिक्षा देना मुख्य ।। ३. गणितानुयोगमें-गणितका विषय है। इसमें क्षेत्रका प्रमाण, सूर्य, चन्द्र, नक्षत्रादिका व उनकी गति विधिका वर्णन ओर आठ तरहकी गगित-पद्धतिका विवंचन है। १. चाणकरणानुयोगमें-चरणमत्तरी और करणसत्तरी है। (देखो टिप्पणी नम्बर १,५.) त्रिपष्टिशनाका-पुरुषचरित्र ग्रन्थ चरितानुयोगका है। इसमें दम पर्व है। हरएक पर्वमें भिन्न भिन्न चरित्र है।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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